




🌸 भावों में भी ना हो हिंसा का विचार – आचार्य महाश्रमण🌸
- भगवती आगम पर आधारित व्याख्यान माला का अनवरत क्रम
- साध्वीश्री की स्मृतिसभा आयोजित
16.10.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन प्रवचनों से प्रवाहित होने वाली शास्त्र वाणी के श्रवण से मुंबई वासी नित्य अपने ज्ञान की अभिवृद्धि कर रहे है। प्रातः काल आचार्यश्री द्वारा भगवती आगम पर मुख्य प्रवचन एवं रात्रि में मुख्यमुनि द्वारा रामायण का आख्यान जन–जन को अध्यात्म की ओर आकर्षित कर रहा है। आज गुरुदेव के सान्निध्य में साध्वी पावनप्रज्ञा जी की स्मृति सभा का समायोजन हुआ। कल 15 अक्टूबर को वें देवलोकगमन को प्राप्त हो गई थी। नवरात्र के उपलक्ष्य में मंत्र जाप का गुरुदेव द्वारा अनुष्ठान करवाया गया।
मंगल प्रवचन में शास्त्र वचन बताते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा– भगवती में प्रश्न उपस्थित हुआ कि भावितात्मा अणगार यदि देखकर चलता है, जयणा से चलता है और जीव अगर उनके पैर के नीचे आकर मर जाए तो उसके इर्यापथिक बंध होता है या साम्प्रयिक बंध होता है ? वीतराग के जो भी क्रिया होती है उसमें तथा ग्यारहवें, बारहवें व तेरहवें गुणस्थान में जो कर्म बंध होता है वह इर्यापथिक बंध होता है। इस बंध में कर्म लगा, भोगा व झड़ा। इर्यापथिक बंध में अल्प समय वाली क्रिया लगती है। इधर एक जीव मर रहा उधर साधु के पुन्य बंध हो रहा है। यह तत्वज्ञान की सूक्ष्म बात है। होना और करना दोनों अलग है। संयम युक्त गति–क्रिया में हिंसा नहीं होती।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि वीतराग के पुण्य का बंध उसके विवेक व शुभ योग से हो रहा है, शुभ क्रिया से हो रहा है। वह अगर शुभ योग में अवस्थित है तो दोष का भागी नहीं होता क्योंकि उसका मारने का इरादा नहीं था। दसवें गुणस्थान तक साम्प्रयिक बंध और उसके बाद के गुणस्थानों में इर्यापथिक बंध होता है। द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा को ठीक से समझें यह जरूरी है। कर्म बंधन में मुख्य रूप से भावों का प्रभाव होता है। हमारे भाव कैसे है, शुभ भाव है या अशुभ भाव व्यक्ति यह ध्यान रखे। भावों में भी हिंसा ना हो। हमारा प्रयास हिंसा से बचने का हो न कि हिंसा करने का।
साध्वी श्री की स्मृति सभा
आचार्य प्रवर ने साध्वी श्री पावनप्रज्ञा जी का संक्षिप्त जीवन परिचय बताते हुए कहा की 1997 में उन्होंने समणी दीक्षा ग्रहण की और इस बार मुंबई में उन्हें साध्वी दीक्षा भी प्राप्त हो गई। उनकी जाप, स्वाध्याय, तपस्या आदि में रुचि रहती थी। समणी अक्षयप्रज्ञा जी उनकी बहन भी है। अन्य भी कई न्यातीले चारित्र आत्माएं है। भीलवाड़ा, छापर चातुर्मास में और यहां मुंबई में उन्हें गुरुकुल वास में रहने का अवसर प्राप्त हो गया। उनकी मंगल पाठ सुनने की रुचि रहती थी। पिछले कुछ समय में उनके शरीर में व्याधि हो गई। शांतिमय, धर्ममय वे प्रतीत हुई। हमारे धर्मसंघ की एक सदस्या ने विदा ले ली। अंत समय में संथारा आना बड़ी बात है। उनकी आत्मा के प्रति मंगलकामना, मध्यस्थ भावना करते है। इस मौके पर चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया।
इस अवसर पर मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने वक्तव्य प्रदान किया। समणी अक्षयप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञा जी, श्री विजय पालगोता, चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री मदन तातेड ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। न्यातिल पालगोता, अकदरा, चोपड़ा परिवार के सदस्यों ने गीत का संगान किया।






