




🌸 बाह्य यात्रा के साथ जरूरी है अंतर्यात्रा – आचार्य महाश्रमण🌸
- आचार्यवर ने दी प्रतिक्रमण द्वारा आत्मशुद्धि की प्रेरणा
17.10.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
हिंसा से ग्रस्त मानव को अहिंसा का सुपथ दिखाने वाले, सद्भावना, करुणा, मैत्री का संदेश देने वाले, 55000 से भी अधिक किलोमीटर पैदल चल अहिंसा यात्रा करने वाले युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी मुंबई महानगर को अपने पवित्र आभामंडल से पावन कर रहे है। चाहे राजनीतिक हस्तियां हो या सामाजिक सरोकार रखने वाले जनप्रतिनिधि, हर जाति, वर्ग समुदाय के लोग आचार्यश्री महाश्रमण के उपदेशों को सुन जीवन में एक नई दिशा को प्राप्त रहे है। आचार्यश्री के सान्निध्य में नंदनवन में नवरात्र के साथ ही नित्य जाप अनुष्ठान का क्रम गतिमान है।
वीतराग समवसरण में प्रवचन करते हुए आचार्यश्री ने भगवती आगम से सोमिल ब्राम्हण का प्रसंग बताते हुए कहा– जैन धर्म के चोबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के पास सोमिल नामक ब्राह्मण आया और उसने भगवान से कुछ प्रश्न किए। एक प्रश्न था आपकी यात्रा क्या है और यह यात्रा आपको मान्य है क्या ? भगवान महावीर ने उत्तर में कहा – हाँ यह यात्रा व बाकी चीजें भी मुझे मान्य है। एक गाँव से दूसरे गाँव जाना भी यात्रा है और वहां जाकर हम उपदेश भी देते है व परोपकार भी करते है। यह हमारी बाह्य यात्रा है, लेकिन इसके साथ हम अंतर्यात्रा भी करते है और वह है हमारी आध्यात्म यात्रा। अध्यात्म यात्रा के प्रमुख अंग है– तप, संयम, साधना व नियम। संयम की यात्रा साधना की यात्रा है। प्रेक्षाध्यान तथा स्वाध्याय को भी अंतर्यात्रा के अंतर्गत समाविष्ट किया जा सकता है। चातुर्मास-काल में कितनी लम्बी–लम्बी तपस्याएँ हो जाती है, जिसमें चारित्रात्माएँ व गृहस्थ दोनों की भागीदारी होती है। तपस्या में शरीर कमजोर भले हो जाएं पर आत्मा बलवान बन जाती है। व्यक्ति यात्रा तपस्या की, स्वाध्याय की, ध्यान की अंतर्यात्रा करे, प्रतिक्रमण करे। प्रतिक्रमण आत्मा का स्नान है जिसमें हर दोष का व्यक्ति प्रायश्चित करता है। हम बाह्य यात्रा के साथ साथ अंतर्यात्रा की ओर भी ध्यान दे और अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ते रहें।




