प्रवचन बड़ौत 14-10-23 शिष्य-गुरु और धर्म- आचार्य विशुद्ध सागर
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज ने ऋषभ सभागार मे तीन दिवसीय विद्वत गोष्ठी के दूसरे दिन मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि सच्चे शिष्य को गुरु भक्त, विनयशील, भव से भयभीत, प्रमाद- आलस रहित, धार्मिक, नम्र, उत्साह वान, विद्वान कल्याण- इच्छुक होना चाहिए। सच्चा शिष्य गुरु के प्रति हमेशा विनम्र रहता है। गुरु आज्ञा ही शिष्य के लिए प्राण होती है। हितकारी, पात्रस्नेही, करुणावान, दयालु, गंभीर, मधुर भाषी, ज्येष्ठ, धैर्यवान, निष्प्रह, ज्ञानी-ध्यानी, तपस्वी, निश्कलंक, अपरिग्रही, दूर दृष्टा, मौन प्रिय, दीर्घसूत्री, अनुरसित अनुभवी और स्व-पर कल्याण कारक धर्म मार्ग के सच्चे निर्ग्रन्थ गुरु होते हैं।
गुरु और शिष्य का श्रद्धा-श्रद्धेय संबंध होता है। गुरु के बिना शिष्य का कल्याण-मार्ग प्रशस्त नहीं होता है। सच्चे गुरु को छत्रछाया में शिष्य श्रेष्ठता को प्राप्त करता है। गुरू शिष्य को ज्ञान- ध्यान एवं आचरण के गुर प्रदान करते हैं। गुरु का निर्देशन ही शिष्य को योग्य बनाता है। सच्चा गुरु ही शिष्य को धर्म मार्ग पर अग्रसर । करता है। गुरु माँ की तरह शिष्य का संरक्षण एवं सुरक्षण करते हैं। गुरु महान होते हैं। सच्चा शिष्य गुरू के उपकारों को कभी नहीं भूलता है, वह हमेशा अपने गुरु के प्रति विनम्र रहता है।
पुण्य क्षीण होने पर अशुभ विचार उत्पन्न होते हैं। जो व्यक्ति अनाचार करता है वह पहले व्यसनों में लिप्न होकर, कषाय में आसक्त होकर अपनी बुद्धि को भ्रष्ट करता है, पश्चात वह कुकर्म में प्रवृत्त होता है। पुण्य क्षीण होने पर विचार भी भ्रष्ट हो जाता है। पुण्यक्षीण न तो शिष्य हो सकता है और न ही वह गुरु बन सकता है। पवित्र विचारों वाले मनुष्य ही प्रचित्र आचरण कर सकता है। नैतिक पुरुष ही धार्मिक हो सकता है। अनुशासन
प्रिय ही शासक हो सकता है। ज्ञान-वैराग्य शक्ति के धारक सज्जन मनुष्य ही सच्चे गुरु और शिष्य हो सकते हैं और सच्चे साधक चाहे वह गुरु हों या शिष्य धार्मिक हो सकते हैं। पुण्य शक्ति विश्व की सर्व श्रेष्ठ शक्ति होती है।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे पंडित वीरसागर दिल्ली, डॉक्टर सोनल शास्त्री। पंडित विनोद छतरपुर, दिनेश जैन भिलाई, ऋषभ जैन, बाहुबली जैन उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी