🌸 वस्तुओं का हो सीमाकरण – आचार्य महाश्रमण🌸
- अणुव्रत अनुशास्ता ने दी परिग्रह से बचने की प्रेरणा
- चतुर्दशी पर गुरुदेव द्वारा हाजरी का वाचन
13.10.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
जैन समुदाय में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ अपनी एक अलग पहचान रखता है। इसका मुख्य कारण है यहां की एक गुरु और एक विधान की मर्यादा। तेरापंथ धर्मसंघ में एक ही आचार्य के अनुशासन में सभी साधु–साध्वी अपनी साधना चर्या का पालन करते है। आचार्य की आज्ञा से ही विहार–चातुर्मास और शिष्य भी सभी एक ही गुरु के होते है। अपनी मर्यादा, अनुशासन, विधान, परंपरा से तेरापंथ ने एक अनूठी पहचान पाई है। वर्तमान में तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का मुंबई चातुर्मास नंदनवन से अध्यात्म की सौरभ पूरे देश–विदेश में फैला रहा है। आज आचार्यश्री के सान्निध्य में चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का उपक्रम रहा। जिसमें गुरुदेव ने तेरापंथ की मर्यादाओं का उल्लेख करते हुए सभी को उनके प्रति जागरूक रहने का प्रतिबोध दिया। साथ ही आचार्यश्री ने चातुर्मास समाप्ति पर दिनांक 28 नवंबर 2023 को प्रातः सवा दस बजे नंदनवन के चातुर्मास स्थल होटल सी एन रॉक से विहार की घोषणा की।
धर्मसभा में प्रवचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा– जीव को अनेक रूपों में आलंबन, सहयोग चाहिए। जीवन चलता है तो कितनों के सहयोग से जीवन चल रहा है। जीवों का सहयोग है तो अजीवों का भी सहयोग इसमें होता है। तीन प्रकार की उपधि का वर्णन भगवती में मिलता है – कर्म उपधि, शरीर उपधि, बाह्य उपकरण उपधि। संसारी अवस्था जीव है यानी कर्म से जुड़ा हुआ है। कर्म का सहारा है तब तक संसार में है। पुण्याई का योग है, शरीर में साता है वह भी कर्म के कारण से है। कर्म के द्वारा एक प्रकार से पोषण, सहारा प्राप्त होता है इसलिए कर्म उपधि है। दूसरा है शरीर। शरीर का जीवन में कितना बड़ा सहारा है। कोई भी कार्य करना हो शरीर के द्वारा होते है। चलना है, बात करनी है, सेवा का कार्य करना है। शरीर के द्वारा ही प्रायः सभी कार्य होते है।
आचार्य श्री ने आगे तीसरी उपधि उपकरण उपधि के बारे में बताते हुए कहा कि प्रतिदिन के उपयोग आने वाले उपकरण जैसे साधुओं के पास वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि जो है वह भी उपधि का सीमाकरण हो। कर्म अंतरंग उपधि है तो उपकरण बाह्य है। जीवन उपधियों से घिरा हुआ है। यहां यह चिंतन की आवश्यकता है कि उपधि का अनावश्यक संग्रह ना हो। उपाधि अल्प रहनी। वस्तुएं उतनी ही हो कितनी आवश्यक है। कपड़े अनावश्यक ना हो, अन्य भी दैनिक उपयोग की वस्तुओं का भी जरूरत से अधिक अनावश्यक संग्रह नहीं होना चाहिए। अनावश्यक संग्रह से एक तो प्रतिलेखन में हिंसा की संभावना रह सकती है। वस्तुओं के प्रति आसक्ति का भाव भी प्रगाढ़ हो सकता है। और फिर उपकरण से और अधिक उपकरण होते चले जाते है। वस्तु है तो उसका पूरा उपयोग हो। ऐसा नहीं की यूज एंड थ्रो, काम लिया फेंक दिया।
इसके उपरांत मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी ने अपने विचारों की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर सूरत से समागत राजश्री बहन ने 31 दिन की तपस्या मासखमण का गुरुदेव से प्रत्याख्यान किया।