



🌸 वेश, परिवेश से ऊपर होती है साधुता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-बाल, पंडित और बाल पंडित शब्दों को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित
-चतुर्दशी तिथि पर चारित्रात्माओं को साधुता को बनाए रखने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
28.09.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जन-जन के मानस को मानवता से गुणों से भावित बनाने, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री जनकल्याण के लिए नन्दनवन में भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन प्रवचन प्रदान करते हैं। इन प्रवचनों के माध्यम से मानवीय मूल्य व मानव जीवन से मोक्ष की साधना तक के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु नन्दनवन परिसर में पहुंच रहे हैं। दूर-दूर के क्षेत्रों के श्रद्धालु वर्तमान में संघबद्ध रूप में अपने गुरु की मंगल सन्निधि में पहुंच रहे हैं। गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशासता आचार्यश्री महाश्रमणजी भगवती सूत्र आगम के माध्यम पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में तीन शब्द बताए गए हैं- बाल, पंडित और बालपंडित। प्रथम गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक के सभी जीवों को तीन वर्गों में बांट दिया गया है। प्रथम चार गुणस्थान वाले जीव बाल कोटि में आते हैं। वायुकाय, वनस्पतिकाय, आकाशास्तिकाय, एकेन्द्रिय, द्विन्द्रिय आदि अनेक प्रकार के प्राणी आते हैं। संसारी जीवों का बहुत बड़ा हिस्सा बाल होता है। छठवें गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान वाले साधु पंडित होते हैं। पांचवा गुणस्थान वाला जीव बालपंडित होता है। इसमें श्रावक अर्थात् मनुष्य और कुछ तिर्यंच गति के जीव भी हो सकते हैं। मनुष्य और कुछ तिर्यंच जीव बालपंडित होते हैं। साधु पंडित कहलाता है। जिसमें पंडा बुद्धि होती है, वह पंडित होता है। एक साधु भले ही कई भाषाओं का जानकार न हो, भले उसे ज्यादा शास्त्रों का भी ज्ञान न हो, किन्तु उसने सर्व सावद्य योगों का त्याग कर लिया है तो वह पंडित ही होता है। जिसमें विरति नहीं, वह साधु नहीं हो सकता, भले ही वह साधु वेश धारण ही क्यों न कर ले। साधुता का प्राप्त होना जीव की बड़ी उपलब्धि होती है। पंच महाव्रत, पांच समितियां और तीन गुप्तियों की आराधना करने का प्रयास होना चाहिए। वेश और परिवेश से साधुता ऊपर होती है। देश और परिवेश और वेश का मूल्य एक सीमा तक हो सकता है। वेश, परिवेश से आत्मा का कल्याण नहीं होता। उसके लिए भीतर में साधुता होनी आवश्यक होती है। संगठन रूप में जीवन जीने के लिए व्यवहार के अनुरूप चलना अच्छा होता है, किन्तु आत्मकल्याण के लिए कषाय से मुक्ति होनी आवश्यक है, इसलिए व्यवहार जगत में रहते हुए भी भीतर में साधुता बनी रहे। चतुर्दशी तिथि होने के कारण मंच पर गुरुकुलवासी समस्त चारित्रात्माओं की भी विशेष उपस्थिति थी। आचार्यश्री ने नियमानुसार हाजरी का वाचन करते हुए भी चारित्रात्माओं को अपने तेरह नियमों के पालन के प्रति जागरूक रहने की विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की अनुज्ञा से बालमुनि देवकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने उन्हें तीन कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त सभी चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया। आचार्यश्री ने आज के दिन शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का भी स्मरण करते हुए कहा कि आज उनके महाप्रयाण को डेढ़ वर्ष पूरे हो गए हैं। आज उनकी मासिकी पुण्यतिथि है। आचार्यश्री ने उनका स्मरण करते हुए पुनः चारित्रात्माओं को देव, गुरु और धर्म के प्रति निष्ठावान बने रहते हुए उत्प्रेरित किया।






