









प्रवचन 22/09/2023 बड़ौत
पवित्रता का प्रतीक : शौच धर्म- आचार्य विशुद्ध सागर
चर्या शिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे श्रावक संयम साधना संस्कार शिविर के मध्य धर्मसभा को सम्बोधन करते हुए कहा कि- “शुचिता का परिणाम, पवित्र भाव, निर्मल- परिणति, संतोषी स्वभाव ही सोच धर्म है। लोभ का अभाव ही ‘शौच- धर्म है। “पानी से तन पवित्र होता है, परन्तु चित्त की शुद्धि, आत्मा की शुद्धि शौच धर्म निर्लोभता से होती है।
सम्पूर्ण अनर्थों की मूल जड़ लोभ है। लोभ के वश होकर मानव दानवता पूर्ण कार्य करता है। लोभ के कारण ही व्यक्ति अनर्थ- पर- अनर्थ कार्य करता है। लोभी कभी दान के परिणाम भी नहीं करता। लोभी सोचता है कि प्राण चले जायें, पर दाम न जाए। व्यक्ति धन के जोड़ने-जोड़ने में बहु- मूल्य जिंदगी को भी न्योछावर कर देता है। लोभी को हिताहित का भी बोध नहीं होता है। लोभी अपनी गृध्ता के कारण अपयश प्राप्त करता है और लोभ की पुष्टि के लिए वह अपने सगों का भी शत्रु बन जाता है। लोभी से सभी सम्बंध तोड़ लेते हैं, वह अन्त में परिग्रह के भार से कारण कर दुर्गति में जन्म लेता है।फलतः संसार में भटकता हुआ भयंकर दुःखों को सहन करता हुआ कष्ट को प्राप्त करता है।
जिसे पवित्रता का बोध होगा, वही सुचिता प्राप्त कर पायेगा। पर के दोष देखोगे तो नीच योग का बंध होगा और निज का दोष देखोगे तो आत्म-कल्याण होगा। एक-एक दोष छोड़ते जाओ, तो तुम गुणवान बन जाओगे। शुचिता प्राप्त करना है, तो गुणग्राही दृष्टि बनाओ।
विकास के लिए विचारों की एक रुपता, नम्रता, सरलताऔर सामन्जस्य आवश्यक है। भावों पवित्रता के अभाव में सुख सम्भव नहीं है। प्रकृति की जो मुद्रा है, वह ‘दिगम्बर’ मुद्रा है। पवित्रता, सुचिता की श्रेष्ठ कोई मुद्रा है तो वह ‘दिगम्बर’ मुद्रा है। जब से अम्बर है, तब से दिगम्बर धर्म है। निर्ग्रन्थ वीतराग धर्म ही पवित्र धर्म है। पवित्र परिणाम करो। आत्म शुद्धि प्राप्त करो। आत्मशोध के लिए, आत्म बोध चाहिए। उत्तमशौच धर्म से ही आत्म शुचिता सम्भव है। संतोषी बनो, तभी साधु बन पाओगे। सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया ।मीडिया प्रभारी वरदान जैन ने बताया कि 24 सितंबर को धूप दशमी पर्व तथा 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर्व नगर में आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में धूमधाम से मनाया जाएगा।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी












