




🌸 पर्युषण महापर्व : महावीर के प्रतिनिधि महाश्रमण ने प्रारम्भ की भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा 🌸
-पर्युषण का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में हुआ समायोजित
-स्वाध्याय-सा कोई तप नहीं : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
-साध्वीप्रमुखाजी व मुख्यमुनिश्री का हुआ उद्बोधन तो साध्वीवर्याजी ने गीत का किया संगान
13.09.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : मायानगरी, भारत की आर्थिक राजधानी व भारत के चार महानगरों में एक मुम्बई महानगर के घोड़बंदर रोड पर स्थित नन्दनवन में वर्ष 2023 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का भव्य एवं आध्यात्मिक वातावरण में शुभारम्भ हो चुका है। श्रद्धालुओं को सूर्योदय के पूर्व से ही जो आध्यात्मिक खुराक प्राप्त होना प्रारम्भ हो रहा है तो विविधि रूपों में सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक भी प्राप्त हो रहा है। इसी आध्यात्मिक खुराक को प्राप्त कर अपने जीवन को धर्म से भावित बनाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु महातपस्वी की मंगल सन्निधि पहुंच चुके हैं। पुर्यषण महापर्व का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में समायोजित हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन से पूर्व मुनि जयेशकुमारजी ने तीर्थ और तीर्थंकर विषय पर अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने दस धर्मों में क्षांति और मुक्ति धर्म पर आधारित गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने क्षांति-मुक्ति धर्म को व्याख्यायित किया। समणी प्रणवप्रज्ञाजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने स्वाध्याय दिवस पर जनता को प्रेरक उद्बोधन प्रदान किया। भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण महापर्व के संदर्भ में आज से भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का क्रम प्रारम्भ करते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा ने तीर्थंकर बनने और मोक्ष प्राप्त से पूर्व अनंत-अनंत बार जन्म ग्रहण किया था। उनका ही नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों की आत्मा ने अब तक अनंत-अनंत बार जन्म-मृत्यु के चक्र से गुजर चुकी है। पर्युषण के दिनों में भगवान महावीर के प्राप्त 27 भवों का वर्णन किया जाता है। जम्बूद्वीप में जयंती नामक नगर के शत्रुमर्दन राजा थे। शासन के लिए राजतंत्र और लोकतंत्र दो प्रणालियां मुख्य हैं। वर्तमान समय में भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली है। सज्जनों की सुरक्षा, दुर्जनों पर अनुशासन और जनता के भरण-पोषण के लिए राजतंत्र अथवा लोकतंत्र की व्यवस्था संचालित होती है। भगवान महावीर के नयसार भव के दौरान एक बार नयसार को जंगल से लकड़ी जाने की जिम्मेदारी दी जाती है। नयसार जंगल जाने के बाद अपने कुछ लोगों के साथ भोजन के लिए बैठता है कि उसी समय साधु लोग आ जाते हैं तो वह साधुओं को नमस्कार करता है। साधु तो चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। साधुओं के दर्शन मात्र से ही पुण्य का लाभ प्राप्त होने की बात भी आती है। अल्प समय की सत्संगति भी कितना कल्याण करने वाली हो सकती है। साधुओं ने नयसार को भी कुछ ज्ञान प्रदान किया। दूसरों को ज्ञान देना भी स्वाध्याय है। आज पर्युषण महापर्व के अंतर्गत स्वाध्याय दिवस भी है। स्वाध्याय से ज्ञान का विकास होता है। 12 प्रकार के तपों में दसवां तप स्वाध्याय होता है। स्वाध्याय के समान कोई तप नहीं होता है। ज्ञान के विकास और ज्ञान की प्राप्ति का सशक्त माध्यम है स्वाध्याय। प्रवचन देना और सुनना भी स्वाध्याय है। स्वाध्याय को तो साधु जीवन का खुराक बताया गया है। मन लगाकर स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। जानकार साधु-साध्वियो को अपने से छोटे साधु-साध्वियों को ज्ञान आदि देने का प्रयास करना चाहिए। संयम रूपी शरीर को स्वाध्याय से पोषण मिलता रहे। श्रावक-श्राविकाओं को भी स्वाध्याय से लाभ प्राप्त होता रहे।




