प्रवचन 13-3-23
उच्च सोच उन्नति का आधार- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगंबर जैन आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ने श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर कैनाल रोड पर आयोजित धर्म सभा में मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि जिसकी जैसी भविलव्यता होती है वैसी ही उसकी क्रिया होती है ।आंतरिक भावों के अनुसार व्यक्ति जीवन जीता है ।भावों की निर्मलता, वाणी की मधुरता, आचरण की पवित्रता, व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित बनाते हैं।कशाय की मंदता, परोपकारवृत्ति, आत्म हितकारी दृष्टि, अध्ययनशीलता, विनम्रता, अनुशासन प्रियता,गुण ग्राहक भाव, निस्प्रहता, उमंग उत्साह, दया ,करुणा और संयम आचरण सर्वोत्थान के लिए आधार स्तंभ है।
प्रयोजन अनुसार प्रयोग करो। सोचो फिर कार्य करो। लोक के सर्व प्राणी स्व प्रयोजन के अनुसार वृत्ति करते हैं। व्यक्ति की उच्च सोच ही उच्चता प्रदान करती है। जिसकी सोच पवित्र होगी उसका भोजन भी पवित्र ही होगा। सज्जन पुरुष अपवित्र ,हिंसक, मांसाहारी भोजन नहीं करते हैं। धर्मात्मा के विचार वाणी और कार्य सर्व हितकारक होते हैं। वाणी वीना बने, बांस न बने। वाणी की मधुरता मिश्री से अधिक मीठी होती है।
समता साधुता का प्रतीक होता है। नगर में साधु के आते ही आर्थिक, नैतिक, सामाजिक, मानसिक उन्नति होती है। साधुओं के संसर्ग से भले कोई साधु न बने, लेकिन वह संतोषी अवश्य बन जाता है। संतोष परम धन है। संतोषी मानव सुख शांति को प्राप्त करता है। हम साधु बन न सके तो कोई बात नहीं, पर संतोषी अवश्य बने ।संतोषी परम सुखी।
हमारी वाह्य वृत्ति आंतरिक भावों की परिचायक होती है। अशुभ भोजन, बुरे भाव, हिंसक वृत्ति, पुण्य शीनता की पहचान है। पुण्य आत्मा का भोजन ,भाव, भाषा एवं वेश पवित्र होते हैं।अशुभ आयु के बंधक अपवित्र भोजन ही करते हैं ।मांसाहार मानवता पर कलंक है। कल्याणकारी दृष्टि है तो अपनी भाषा ,भोजन,भाव और भेष को पवित्र करो ।जिसके वचन पवित्र नहीं वह कितना भी वास्तु सुधार ले, उसे शांति नहीं मिल सकती है। सुख शांति की चाह है तो अपने वचनों को संभालो।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा में सुरेंद्र जैन, अनिल जैन ,नवीन जैन दीपक जैन, सतीश जैन ,विनोद जैन एडवोकेट, प्रवीण जैन, सुनील जैन, सुभाष जैन, अशोक जैन अतुल जैन, आदि उपस्थित थे। वरदान जैन मीडिया प्रभारी