




प्रवचन बड़ौत 14/09/23
जियो और जीने दो – आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य गुरुवर श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर कैनाल रोड पर धर्म सभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि – अशुद्ध में शुद्ध द्रव्य को निहारता है नही सच्चा ज्ञानी है। अमुक्त दशा में शुद्ध द्रव्य का जिसे बोध होता है नही प्रज्ञ-पुरुष होता है। कृषक भी बीज में वृक्ष को निहारता है, तभी वह चमकते ‘बीज को खेत की मिट्टी में डालता है। ग्वालिन को भी दुग्ध में घृत दिखाई देता है तभी वह दही जमाकर बिलोनल कर घृत निकालती है। जो अदृष्ट को जानता है, वही ज्ञानी है। दृष्ट के साथ अदृष्ट को भी निहारना चाहिए।
बाह्य तप-साधना के साथ अंतरंग पुरुषार्थ भी प्रबल होना चाहिए। मनुष्य पर्याय का मिलना बहुत दुर्लभ है। मनुष्य भव प्राप्त करके श्रेष्ठ कार्य करना भी दुर्लभ है। व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, अपितु सुखद कार्यों से व्यक्ति महानता को प्राप्त करता है।
दुनिया के लोग जीवन जीना सिखाते हैं, परन्तु मरने की कला एक मात्र जैन दर्शन ही सिखाता है। जैनाचार्यों ने विश्व वसुधा को विशिष्ट विचार आचार, अध्यात्म के साथ-साथ विशाल दृष्टि भी प्रदान की है। जहाँ जगत के सोच का अंत हो जाता है उससे भी अधिक आगे से जैनाचार्यों का विराट सोच प्रारम्भ होता है।
जिनशासन के दिगम्बर मुनि जन-जन में सत्य अहिंसा, सत्य, सदाचरण का सद्बोध देते हैं। जैन दर्शन ने विश्व संस्कृति को साहित्य एवं पुरातत्त्व का विपुल भण्डार दिया है। जिन भक्त हमारी संस्कृति, धर्म, 1 समाज की उन्नति के लिए सजग रहते है। व्यसन मुक्त, सदाचरण सहित नागरिक ही विश्व शांति के प्रतीक हैं।
जैन दर्शन ने हमेशा से सदाचरण, उच्च विचार, दया, करुणा, परस्पर सहयोग का ही पक्ष लिया है। जियो “और जीनो दो” यह जैन दर्शन का सूत्र है।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे सुरेंद्र जैन, प्रवीण जैन, अनिल जैन, सुनील जैन, नवीन बब्बल, दीपक जैन, सतीश जैन, विनोद एडवोकेट उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी