



प्रर्युषण पर्व का हर्षोल्लास पूर्वक प्रारंभ
अध्यात्म का प्रतिनिधि पर्व है – पर्युषण – मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
युगप्रधान महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सानिध्य में पर्युषण पर्व का शुभारंभ खाद्य संयम दिवस के रूप में साउथ कलकत्ता श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित किया गया । इस अवसर पर उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनिश्री जिनेशकुमार जी ने कहा – मन को निर्मल बनाने का पथ है- धर्म।धर्म का प्रायोगिक रूप पर्युषण है। पर्युषण अध्यात्म का प्रतिनिधि, पर्व है। यह एक मात्र आत्मलोचन का प्रतीक है। यह पर्व मनोरंजन का नहीं आत्मरंजन का पर्व है। जहां दुनियां के अधिकांश पर्व खा पीकर आमोद-प्रमोद के साथ मनाये जाते है वही यह पर्व त्याग, तपस्या के द्वारा मनाया जाता है। जैनों का यह विशिष्ट पर्व है। पर्युषण का अर्थ है- चारों ओर से सिमटकर एक स्थान पर निवास करना अथवा स्वयं में वास करना। जिस प्रकार पंछी दिनभर आकाश की सैर कर सायं नीड़ में लौट आता है उसी प्रकार श्रावक को पर्युषण महापर्व में आत्म रूपी अपने घर में लौट आना चाहिए क्योंकि पर्युषण जैन संस्कृति का श्रेष्ठतम पर्व है। पर्युषण आराधना के लिए पाँच सूत्र अहिंसा, क्षमापना तेला तप, साधर्मिक वात्सल्य विशेष उपासना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। | व्यक्ति को जीव हिंसा से बचना चाहिए। हिंसा की रोकथाम से पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है। पर्युषण में व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा मैत्री करुणा, दया, जागररूकता का विकास करना चाहिए। खाद्य संयम दिवस पर संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा – शरीर को स्वस्थ रखने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है – खाद्य संयम । आहार से व्यवहार का निर्माण होता है। आहार शुद्धि से सत्व की शुद्धि होती है और सत्व शुद्धि से स्मृति बढ़ती है । तामसिक व – राजसिक भोजन से बचना चाहिए। इस अवसर पर मुनिश्री परमानंदजी ने कहा – पर्युषण का अर्थ है-आत्मा के निकट रहना। पर्युषण में पाप प्रवृत्ति का त्याग करें। पर्युषण में प्रवचन श्रवण, प्रतिक्रमण एवं तप करें। बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी सुमधुर गीत का संगान करते हुए विचार व्यक्त किये । साउथ कलकत्ता श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष विनोद जी चौरड़िया ने पर्युषण में अधिक से अधिक धर्म आराधना का अहवान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल साउथ कोलकाता एवं टांलीगंज की बहनों के मंगलाचरण से हुआ।




