Surendra munot, Associate editor all india {form West Bengal}
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कोलकाता,युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा – 3 के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का चतुर्थ दिन वाणी संयम दिवस के रूप में भिक्षु विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (कोलकत्ता-पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम मनाया गया।इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए जिनेश कुमार जी ने कहा – जीवन के क्रियाक्षेत्र को संचालित करनेवाले तीन तत्व है – मन, वचन, काया। मन से व्यक्ति सोचता है , वचन से बोलता है, काया से चेष्टा करता है। विचारों के आदान-प्रदान का साधन वचन है। वचन अनुपम शक्ति है। तारक और मारक दोनों होते है। एक वचन औषध का काम करती है तो एक वचन घाव का काम करती है। भाषा समिति व वचन गुप्ति दोनों भाषा के प्रकार है। विवेक पूर्व बोलना भाषा समिति और भाषा पर पूर्ण संयम करना वचन गुप्ति कहलाती हैं। भाषा की तीन कसौटियां है – सत्य , संयम व प्रियवचन। व्यक्ति हमेशा मीठा व मधुर बोले। अहंकार की भाषा का प्रयोग न करके सुझाव की भाषा ज़्यादा हितकर होती है। मुनि ने आगे कहा – पानी , मनी व वाणी का उपयोग सोचविचार करके करना चाहिए। वाणी की सभ्यता जीवन की भव्यता है। जिह्वा बिगड़ी तो जीवन बिगड़ा। अपमान की सर्जरी आपरेशन की सर्जरी से भी ज्यादा दुःखदायी होती है। मुनि ने मौन का महत्व बताते हुए कहा कि मौन का अर्थ है – वाणी का संयम व अनावश्यक नहीं बोलना। मौन से ऊर्जा का विकास होता है,विवाद नहीं होता है मौन साधना का प्रवेश द्वार। मौन से व्यक्ति निर्विचारता की स्थिति तक पंहुच सकता है। मुनि ने भगवान महावीर के जीवन दर्शन का वचन करते हुए अठारह भव त्रिपृष्ठ वासुदेव के बारे में बताया और कहा कर्मो की मार खतरनाक होती है। कर्म के कारण ही जीव जन्म-मरण करता है। इसलिए व्यक्ति कर्म करते हुए सावधान रहे। त्रिपृष्ठ वासुदेव ने शय्या पालक के शीशा डालवाया जिसके कारण उनको नरक में जाना पड़ा।इस अवसर पर मुनि परमानंद ने कहा – इंसान की माँ बोलना सिखाती है, पत्नी चुप रहना सिखाती है और पर्युषण वाणी संयम सिखाता है। वाणी के संयम पर रिश्तों की मधुरता टिकी हुई है।मुनि कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान करते हुए आपने विचार व्यक्त किये।कार्यक्रम के शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल – मध्य कोलकाता के मंगलाचरण से हुआ।