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सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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मध्य उत्तर कोलकाता,प्रेक्षाप्रणेता, युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के 16 वें महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धार्पण समारोह का आयोजन युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमारजी ठाणा -3 के सानिध्य में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा मध्य-उत्तर कोलकाता द्वारा हरियाणा भवन में आयोजित हुआ। इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा आचार्य महाप्रज्ञ जी अनेक विशेषताओं के धनी थे। वे एक संत, आचार्य प्रशासक, ज्ञानी, विज्ञानी, आगम वेत्ता, विधिवेता, दार्शनिक, यायावर, प्रवचनकार, साहित्यकार, लेखक व कवि थे। वे जैन न्याय के राधाकृष्णन् थे। उनकी प्रज्ञा को देखकर भद्रबाहु एवं हरिभद्र जीवंत हो उठते थे। उनकी सहिष्णुता, समर्पण श्रमनिष्ठा सहजता, सरलता बेजोड़ थी । वे निर्मल व पवित्र आभा से सम्पन्न थे। उन्होंने न्याय, दर्शन, प्रेक्षा जैनधर्म, संस्कृति आदि अनेक सम सामयिक विषयों पर करीबन 275 ग्रंथों की रचना की। उनके ग्रंथ साहित्य जगत की अमूल्य निधि है। मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने आगे कहा वे आचार्य श्री तुलसी के विचारों के भाष्यकार थे। उन्होंने अपने जीवन के नौवें दशक में अहिंसा यात्रा कर – विशिष्ट कार्य किया। अवस्था ज्येष्ठत्व, विशिष्ट संतत्व, कुशल नेतृत्व व ज्ञान वृद्धत्व था। उनके 16 वें महाप्रयाण दिवस पर अपनी श्रद्धा समर्पित करता हूं। उनके द्वारा प्रदत्त प्रेक्षाध्यान अवदान को जन-जन तक तक पहुंचाने का प्रयास करें जिससे उनका महाप्रयाण दिवस मनाना सार्थक हो सकेगा।इस अवसर पर मुनिश्री परमानंद जी ने कहा- आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी दृढ़, संलल्प के धनी थे। बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत की संगान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल मध्य कोलकाता की बहनों द्वारा महाप्रज्ञ अष्टकम् के संगान से हुआ। स्वागत भाषण तेरापंथी सभा मध्य उत्तर कोलकाता के अध्यक्ष पारसमल जी सेठिया ने दिया। इस अवसर पर कलकत्ता सभा के अध्यक्ष अजय जी भंसाली , रमेशजी गोयल ने अपने श्रद्धासिक्त उद्गार व्यक्त किये।
श्रद्धार्पण समारोह में तेरापंथ महिला मंडल मध्य कोलकाता, पूर्वांचल, दक्षिण कलकत्ता, दक्षिण हावड़ा, उत्तर हावड़ा, टांलीगंज-बेहाला ने गीत, कविता, शब्दचित्र आदि के माध्यम से आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी को श्रद्धा समर्पित की।
आभार ज्ञापन सहमंत्री विनय बच्छावत ने किया कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद ने दिया ।