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प्रवचन 20-08-23
गुनियों के गुण देखे, वही धनवान- विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य गुरूवर श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने त्रि दिवसिय गोष्ठी के अंतिम दिन, ऋषभ सभागार मे धर्म- सभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि- ‘पवित्र भावों से सच्चे-गुरुओं का दर्शन पुण्यानुबंधी पुण्य का आसव कराता है। कार्य की सिद्धि होती है आत्म-अल्लाहात होता है, अशुभ कर्मों का क्षय होता है। प्रभु के दर्शन से पाप क्षय होता है, पुण्य के कोश भरते हैं। पुण्य के उदय में संसार के सर्व-सुखद साधन प्राप्त होते हैं और पाप के उदय में सर्व नाश होता है। पुण्य चाहिए या पाप यह निर्णय हमें स्वयं करना है। पुण्यात्मा ही सर्व सुखों का भोक्ता होता है।
व्यक्ति को पद के अनुकूल अपनी वृत्ति करना चाहिए।
उतावलापन व्यक्ति के व्यक्तित्व को धूमिल कर देता है। गंभीरता
व्यक्ति के व्यक्तित्व को ऊँचा और प्रभावी बनाता है। जिसका
कृतित्व श्रेष्ठ है, उसे पुरुषार्थ पूर्वक अपने व्यक्तित्व को प्रभावी
बनाना चाहिए।
अपने उन पूर्व-परिणामों पर विचार करो, जिन परिणामों से अपको सुन्दर रूप, उच्च कुल, प्रबल पुण्य एवं मनुष्य पर्याय प्राप्त हुई है। जो प्रभु के दर्शन करता है, गुरुओं की सेवा करता है, वही इस धरा पर प्रबल पुण्यात्मा है। जिसके विचार
हीन हों, गुरुओं के प्रति द्वेष-बुद्धि हो, गुणियों के गुणों को कहने में उद्यत न हो, यही निर्धन है।
चक्की का चाहे नीचे का पाटा हो, चाहे ऊपर का पाटा हो, दोनों ही पाटे काम के हैं। ऐसे ही चाहे निश्चय हो या व्यवहार हो, दोनों ही नय आवश्यक हैं। अपनी-अपनी जगह सबका अपना , महत्त्व होता है।गोष्ठी का संचालन वाचस्पति पंडित श्रेयांस जैन ने किया।गोष्ठी मे प्रो फूलचंद् प्रेमी, प्रो अशोक कुमार,प्रो अनेकांत जैन, प्रो श्रेयांस सिंघाई, डॉ वीर सागर, डॉ शीतल चंद्र आदि थे।दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन और भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष मनोज जैन द्वारा सभी विद्वानों का माला पहनाकर सम्मान किया।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी




