प्रवचन 13-8-2023 बड़ौत
शांति का साधन : आत्म-शुचिता- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मनधर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि- शरीर सड़न- गलनशील है, रोगों का घर है, मल का घट है, देह नश्वर है, मल का पिण्ड है, अशुचि है, विनाशीक है। यह शरीर मांस और हड्डी से निर्मित है, मल-मूत्र से भरा है। दो नयन, दो कान, दो नथुने, मुख, मल द्वार, और मूत्र द्वार इन नौ द्वारों से निरंतर मल, अशुचि पदार्थ बहते रहते हैं। योवन क्षणिक है, इंद्रियों के भोग अस्थिर हैं, दुःखदायी हैं, कष्ट देने वाले हैं। श्रेष्ठ नर वही है, जो इस देह को प्राप्त करके श्रेष्ठ मानव कल्याण के कार्य करते हैं। विश्व उत्थान का विचार करते हैं तथा आत्मशांति का उपाय करते हैं। जीवन ऐसा जियो कि- कभी रोना न पड़े।
मनुष्य जन्म लेना उन्हीं का सफल है, जो जन्म-मरण से अतीत होने का सम्यक्-पुरुषार्थ करते हैं। अधोगति से बचना है, महा-दुःख से रक्षा करना है तो भावों को पवित्र करो । भावों की निर्मलता, आत्म शुचिता ही परम-शांति साधन हैं । अच्छा जीवन उन्हीं का होता है, जो आकांक्षायें न्यून करता है। अधिक चाह अशांति का मूल कारण है। आकांक्षायें अधिक, पर पुण्य न्यूनता कष्ट ही दे पाएगा। संतोषी बनो, समता धारण करो।
आत्म भाव, आत्म लीनता, सत्य-संयम, विनय- विवेक, ज्ञान लीनता, निस्पृहता, निर्लोभता, वैराग्य और आत्म-कल्याण की जिसकी भावना है वह निश्चित सुख प्राप्त करता है।
जो साधना के मार्ग पर चलता है, वह जगत् की चिंता नहीं करता है। अन्तर्मुखी दृष्टि रखने वाला स्वहित के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं करता है। स्वहित से बढ़कर अन्य कोई कार्य नहीं होता है। स्व हित करो, प्रतिक्षण आत्म कल्याण की दृष्टि रखो।सभा मे मुनि श्री सौम्य सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे विनोद जैन एडवोकेट, सुरेश जैन, सुखमाल जैन, वरदान जैन, अशोक जैन, पुनीत जैन, शुभम जैन,इंद्राणी जैन, त्रिशला जैन आदि उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी
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