प्रवचन बड़ौत 31-7-2023
मुक्तिका साधन : आत्म-ध्यान – आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने ऋषभ सभागार मे बड़ौत दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा आयोजित धर्म सभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि संसार में अनेकानेक जीव हैं, वह सब अपने- अपने अनुसार ही जीवन जीते हैं। एक व्यक्ति प्रातः उठकर प्रभु दर्शन को जाता है और उसी समय एक व्यक्ति हिंसक कार्य करता है। एक व्यक्ति दान करता है और एक व्यक्ति चोरी करता है। एक बेटा माँ की सेवा करता है, एक बेटा माँ को घर से निकाल देता है। समय, शक्ति, बुद्धि, मानव कुल, धन-धरती सबको प्राप्त है, परन्तु सभी स्व-स्व बुद्धि से प्रयोग करते हैं।
संयमी की पूजा होती है, ज्ञानी का सम्मान होता है, विद्वान का सत्कार होता है, परिश्रमी की प्रशंसा होती है। व्यक्ति को प्रतिपल उन्नति के लिए पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। जीवन भर अपने यश की रक्षा कर लेना, पुरुषार्थ साध्य है।
कच्चा माल ही पक्का होता है। पापी ही पाप छोड़कर धर्म-मार्ग पर आगे बढ़ता है। आटे से ही रोटी बनती है। आटा ही फेंक देंगे तो रोटी कैसे बनेगी? पापी को ही मार दोगे तो पाप छोड़कर धर्मात्मा कौन बनेगा। गर्भ की ही रक्षा नहीं करोगे, तो सन्तान कहाँ से जन्म लेगी? धर्मात्मा के बिना धर्म नहीं होता है। धर्म-संस्कृति की रक्षा करना है, तो धर्मात्मा की रक्षा करो। संतान संस्कारित होगी तो धर्म-संस्कृति का विकास होगा। बीज की रक्षा करो, बीज के अभाव में वृक्ष भी नहीं होंगे।
आयु पूर्ण होते ही मृत्यु हो जाती है। मरण हो उसके पहले कुछ अच्छा कार्य करलो। वर्तमान का पुरुषार्थ ही भविष्य का निर्माण करता है। ध्यान-साधना से कर्मों का क्षय होता है। ध्यान आलौकिक-साधना है।
जो सूर्य के समान आत्म तेज से दीप्यमान है, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य, से अनन्त ज्ञान स्वरूप है, सम्पूर्ण संसार का उपकार करने वाला है, आनन्द रूप है, ऐसा आत्मा ही सम्यग्दृष्टि सज्जनों के द्वारा ध्यान करने योग्य है। जो था, है और हमेशा चैतन्यमयी रहेगा वही आत्मा है। सभा का संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, विनोद जैन, राकेश सभासद,वरदान जैन, धनेंद्र जैन, अशोक जैन, पुनीत जैन, दिनेश जैन, विवेक जैन,वकील चंद जैन आदि उपस्थित थे
वरदान जैन
मीडिया प्रभारी
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