
सुरेंंद्र मुनोत ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
जाणुन्दा, पाली (राजस्थान), शूर-वीरों की धरती, धोरों की धरती राजस्थान वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की आध्यात्मिक वाणी से गुंजायमान हो रही है। जन-जन के मानस को निर्मल बनाने व लोगों के भावों को धार्मिक-आध्यात्मिक रूप से पुष्ट बनाने के लिए गतिमान राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में पाली जिले में विहरण कर रहे हैं। मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ खिंवाड़ा गांव से मंगल प्रस्थान किया। खिंवाड़ावासियों ने अपने आराध्य के चरणों में अपने कृतज्ञ भाव अर्पित कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। मार्ग में अनेक स्थानों पर दर्शन करने वालों को अपने आशीष से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ आज जाणुन्दा गांव की ओर गतिमान थे। जाणुंदावासी अपने आराध्य की प्रतीक्षा में पलक-पांवड़े बिछाए खड़े थे। आचार्यश्री लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर जाणुन्दा गांव में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। आज का प्रवास यहीं निर्धारित था। इसके साथ आचार्यश्री तुलसी दीक्षा शताब्दी समारोह का आयोजन भी किया गया था।
विद्यालय परिसर में ही आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आचार्यश्री तुलसी दीक्षा शताब्दी समारोह’ के संदर्भ में निर्धारित विषय ‘आचार्यश्री तुलसी दीक्षा शताब्दी और मुमुक्षु का महत्त्व’ पर समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि एक सामान्य रास्ता होता है, जिस पर हर कोई चलता है एक कठिन रास्ता अथवा महान मार्ग होता है, जिस चलना हर किसी के संभव नहीं होता। वैसे महान पथ पर महान लोग ही चल सकते हैं अथवा वैसा पथ जिस पर चलने से आदमी महानता को प्राप्त कर सकता है, उसे महाविथि कह सकते हैं। उस महापथ पर चलने वाला वीरपुरुष हो सकता है। कायर आदमी के लिए उस पथ पर अनुगमन करना संभव ही नहीं हो सकता। एक मोह का मार्ग होता है और दूसरा मोक्ष का मार्ग होता है। मोह का मार्ग संसार का मार्ग होता है, जन्म-मृत्यु के चक्र से बंध हुआ मार्ग होता है। दूसरा मोक्ष का मार्ग होता है जो व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है तथा जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त बना देता है।
आज पौष कृष्णा पंचमी है। आज से सौ वर्ष पूर्व वि.सं. 1982 को एक बालक ने मोह का मार्ग छोड़कर मोक्ष का मार्ग स्वीकार किया था। तीन चीजें दुर्लभ बताई गईं हैं- पहली बात है मनुष्य जन्म का मिलना, मुमुक्षा का भाव मिलना मुश्किल और महापुरुषों का मौका मिलना भी मुश्किल हो सकता है। आज के दिन हमारे धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी ने तुलसी नामक बालक को लाडनूं में साधुत्व की दीक्षा थी। आज उसकी घटना को सौ वर्ष पूर्ण हो गए हैं। उन्हें इस रूप में उनका उत्तराधिकारी मिल गया। दीक्षा से पूर्व मुमुक्षा का होना आवश्यक होता है। ऐसे आदमी के दया का भाव हो, संसार से विरक्ति का भाव तो आदमी समत्वी हो सकता है। मोक्ष की भावना का वेग मुमुक्षा होती है। संसार सागर को पार पाने की भावना भी मुमुक्षा हो सकती है। अभव्य सौ बार दीक्षा ले ले तो भी उसे मुक्ति नहीं मिल सकती।
आचार्यश्री ने मुमुक्षा की चर्चा कर रही रहे थे कि सामने की ओर अवस्थित मुमुक्षु पृशा से आचार्यश्री ने कुछ तात्विक प्रश्न पूछे, जिसका मुमुक्षु ने उत्तर प्रदान किया। आचार्यश्री ने कहा कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई हो। मुमुक्षु ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए दीक्षा दिलाने की भावना व्यक्त की तो आचार्यश्री ने उसके परिजनों से उनके भावों की जानकारी करने के उपरान्त मुमुक्षु पृशा पर विशेष कृपा कराते हुए कहा कि मुमुक्षु पृशा को जैन विश्व भारती-लाडनूं में गुरुदेव तुलसी की मासिकी पुण्यतिथि चैत्र कृष्णा तृतीया तदनुसार 6 मार्च 2026 को साध्वी दीक्षा प्रदान करने घोषणा की। आचार्यश्री की इस घोषणा से पूरा पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
आचार्यश्री ने पुनः आगे वर्णन करते हुए कहा कि आज के दिन परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी ने साधुत्व की दीक्षा स्वीकार की थी। इसलिए मुमुक्षा का बहुत महत्त्व है। इससे मोक्ष की प्राप्ति संभव हो सकती है। ग्यारह वर्षों के बाद वे युवाचार्य बने और शीघ्र ही आचार्य भी बन गए थे। फिर उन्होंने ने कितने संतों व साध्वियों तथा समण दीक्षा प्रदान की थी। आज उनकी दीक्षा की सौ वर्ष की सम्पन्नता के उपलक्ष में उनको वंदन और श्रद्धा का अर्पण करता हूं।
आचार्यश्री की मंगलवाणी के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने आचार्यश्री तुलसी के प्रति श्रद्धाप्रणति अर्पित की।
आचार्यश्री ने कहा कि आज जाणुन्दा आए हैं। बेंगलुरु चतुर्मास के अध्यक्ष श्री मूलचंदजी नाहर का गांव है। उनके परिवार की सेवा शेषकाल में चलता रहता है। यहां के सभी लोगों में धार्मिक चेतना बनी रहे। पूरे नाहर परिवार में अच्छी भावना व धार्मिकता बनी रहे। आचार्यश्री ने मुमुक्षु जहान बेताला को भी जैन विश्व भारती-लाडनूं में साधु दीक्षा देने की घोषणा की।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। राजस्थान के शिक्षा मंत्री व पंचायती राज मंत्री श्री मदन दिलावर ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
समणी श्रद्धाप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नाहर परिवार के सदस्यों ने गीत का संगान किया। श्रीमती शशिबाई नाहर व श्री मुकेश नाहर ने अपनी अभिव्यक्ति दी।

