
सुरेंंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कंटालिया, पाली (राजस्थान),आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु की जन्मस्थली कंटालिया। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का कंटालिया प्रवास का दूसरा दिन। आचार्यश्री द्वारा पूर्व से निर्धारित ‘भिक्षु चेतना वर्ष’ के महाचरण की समायोजना।
रावले की भूमि पर बना भव्य एवं विशाल भिक्षु समवसरण। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंचासीन होने से पूर्व ही पूरा प्रवचन पण्डाल जनाकीर्ण बना हुआ था। निर्धारित समय पर मंच पर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता उपस्थित हुए तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गूंज उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ ‘आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष’ के महाचरण कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम मुनि कीर्तिकुमारजी व मुनि अर्हमकुमारजी ने गीत को प्रस्तुति दी। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने ‘आचार्यश्री भिक्षु का शैशवकाल’ विषय पर अपनी अभिव्यक्ति देते हुए जनता को उद्बोधित किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के जीवन में धर्म होता है तो परम को प्राप्त कराने वाली चीज उपलब्ध हो सकती है। धर्म के संस्कार पूर्व जन्मों से भी संबद्ध हो सकते हैं। आदमी का शैशवकाल भी होता है। प्रत्येक बच्चे-बच्चे में अंतर भी हो सकता है। शैशवकाल का बढ़िया उपयोग भी किया जा सकता है। संस्कार देने का प्रयास तो गर्भावस्था से ही किया जा सकता है।
अभी हम कंटालिया में हैं, जिले आचार्यश्री भिक्षु के जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। ‘आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष’ के दौरान हमारा यहां आना हुआ है। हमने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्म शताब्दी भी मनाई थी, लेकिन टमकोर नहीं जाना हो पाया था, परन्तु आचार्यश्री भिक्षु की जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के दौरान कंटालिया में आना हो गया। आचार्यश्री भिक्षु शैशवकाल में ही समाधान निकालने वाले थे। प्रत्येक आदमी को शैशवकाल का विशेष लाभ उठाने का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी बारहवें वर्ष में, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ग्यारहवें वर्ष में साधु बन गए। साध्वी गुलाब सतीजी के जन्म के आठ वर्ष भी नहीं हुई थीं, उनकी दीक्षा हो गई। शैशवावस्था में ज्ञानार्जन का प्रयास होना चाहिए। जिनका शैशवकाल चल रहा है, उन्हें अपने शैशवकाल का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के ज्येष्ठ भ्राता स्व. सुजानमलजी दुगड़ के देहावसान के संदर्भ में स्मृति सभा का आयोजन हुआ। इस संदर्भ में सर्वप्रथम आचार्यश्री ने कहा कि शास्त्र में शरीर को अनित्य कहा गया है और इसका कभी नाश भी होता है। 13 दिसम्बर को श्री सुजानमलजी दुगड़ का देहावसान हो गया। हमारे संसारपक्षीय परिवार में सबसे बड़े थे। आचार्यश्री ने उनके जीवन व अपने दीक्षा आदि के प्रसंगों का वर्णन किया। आचार्यश्री ने उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी, स्व. सुजानमलजी की संसारपक्षीय पुत्री साध्वी सुमतिप्रभाजी, साध्वी चारित्रयशाजी, मुनि कुमारश्रमणजी, मुनि कीर्तिकुमारजी, मुनि विश्रुतकुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी ने उनकी आत्मा के ऊर्ध्वारोहण की आध्यात्मिक मंगलकामना की।
दूगड़ परिवार की ओर से श्री सूरजकरण दूगड़, श्री श्रीचन्द दूगड़, श्री महेन्द्र दूगड़, श्री नितेश, श्री धीरज, श्रीमती मधु, श्री सुमतिचंद गोठी, श्री गौतम जे. सेठिया, श्री रूपचंद दूगड़ ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उनके पारिवारिकजनों को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया।

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