
सुरेंंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
मगरतलाब, पाली (राजस्थान) मेवाड़ की धरती को पावन बनाने के उपरान्त मारवाड़ की धरा को आध्यात्मिकता से अप्लावित करने को और अध्यात्म की ज्ञानगंगा से जन-जन के मानस को अभिसिंचन प्रदान करने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में कोट सोलंकियान से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगों को मंगल आशीष प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 7 किलोमीटर का विहार सम्पन्न कर मगलतलाब में स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी का जीवन धर्म का स्थान बन जाए, ऐसा प्रयास करना चाहिए। भौतिक रूप में भी धर्मस्थान होते हैं। कहीं मंदिर, कहीं तेरापंथ भवन, जैन स्थानक, कहीं चर्च आदि के रूप में अलग-अलग धर्म स्थान हो सकते हैं। उनकी उपयोगिता भी अस्वीकृत नहीं की जा रही है। उसके माध्यम से धर्म की प्रभावना होती है, धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। धर्म स्थान होने से लोगों को एक स्थान पर उपस्थित होने का सार्वजनिक स्थान प्राप्त हो जाता है। किसी के घर में जाने में भले कोई सोचे, लेकिन धर्म स्थान तो सभी का होता है, वहां लोग सहर्ष उपस्थित होते हैं वहां धर्माराधना करते हैं।
आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि जीवन ही धर्म स्थान बन जाए, जीवन धर्ममय हो जाए। इसके लिए आदमी को अपने कर्म के साथ ही धर्म को जोड़ लेने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के व्यवहार ही धर्ममय हो जाए, ऐसा प्रयास होना चाहिए। धर्म से युक्त व्यवहार करने वाले व्यक्ति के जीवन का कल्याण हो सकता है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया था। यह अणुव्रत एक ऐसा धर्म है, जिसे जीवन के व्यवहार में रखा जा सकता है। आदमी कहां भी जाए, कहीं भी रहे, किसी भी पेशे में रहे, उसके प्रत्येक व्यवहार के साथ जुड़ा रह सकता है। अणुव्रत की चर्चा आम जनता के बीच कहीं भी हो सकती है। अणुव्रत की बात तो धर्म स्थान के बाहर भी किया जा सकता है। इसके लिए आदमी के भीतर प्राणियों के प्रति दया की भावना हो। किसी भी जीव की अनावश्यक हिंसा नहीं होनी चाहिए। प्राणी के प्रति दया की भावना हो। आदमी को औचित्य का लंघन नहीं करना चाहिए। आदमी को जहां तक संभव हो सके, दूसरों के प्रति हित की भावना रखने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को लक्ष्मी आदि किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं करना चाहिए। ज्ञान होने पर भी आदमी को मौन रखने का प्रयास, शक्ति होने पर भी क्षमाशीलता की भावना रखना। इसके साथ साधु अथवा अच्छे सज्जनों व्यक्ति की संगति करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने साध्वीद्वय साध्वी कुन्दनरेखाजी और साध्वी आनंदप्रभाजी को दीक्षा पर्याय के पचास वर्ष की सम्पन्नता के अवसर पर मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री ने आगे कहा कि अब मारवाड़ में आना हुआ है। अब मारवाड़ में काफी रहना है। यह भी आचार्यश्री भिक्षु स्वामी से संबद्ध है। यहां के लोगों में भी धार्मिक भावना बनी रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने लोगों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को मंगल प्रेरणा प्रदान की। परमार परिवार की ओर श्री सुगनराज परमार ने अपनी अभिव्यक्ति दी। परमार परिवार की बहु-बेटियों ने गीत को प्रस्तुति दी। जैन संघ मगरतलाब की ओर से सुगनराज परमार ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। खिंवाड़ा से श्रीमती रेखा खांटेड़ ने आचार्यश्री से 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंची साध्वी त्रिशलाकुमारीजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। स्थानीय मगरतलाब के जैन समाज ने सामूहिक रूप में वंदन किया।

