सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
की लाइन टाइम्स
कोबा, गांधीनगर (गुजरात)
आचार्य श्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी एवं प्रेक्षा कल्याण वर्ष के अंतर्गत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का अहमदाबाद चातुर्मास विविध कार्यक्रमों, आयोजनों से श्रद्धालुओं में आध्यात्मिक जागृति फैला रहा है। पर्यूषण के पश्चात देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का आवागमन और अधिक हो रहा है। श्रावक समाज में अपनी आस्था के केंद्र बिंदु के दर्शन और संवत्सरी महापर्व पश्चात खमतखामना करने का लक्ष्य उन्हें अहमदाबाद में गुरू दर्शन हेतु अपने आप मानों खींच रहा है। गुरूदेव की आगम आधारित धर्म देशना, आध्यात्मिक कक्षाएं, सेमिनार, धर्म चर्चा द्वारा श्रावक श्राविकाएं ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की चतुष्टयी में अपने आप को नियोजित कर रहे है।
भिक्षु समवसरण में प्रवचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा – व्यक्ति को पुरुषार्थ करना चाहिए, पुरुषार्थ का फल अवश्य मिलता है। अच्छे पुरुषार्थ का अच्छा व बुरे पुरुषार्थ का बुरा फल होता है। यदि तत्काल फल न भी मिले तो व्यक्ति धैर्य रखना चाहिए। पुरुषार्थ करना हमारे हाथ में है वह करते रहे। दवाई कभी कारगर होती है, कभी नहीं भी होती है। यदि परिणाम न दे तो किसका दोष ? स्थूल में नहीं तो सूक्ष्म में अवश्य फल मिलता है। आलस्य के समान कोई मनुष्य का शत्रु नहीं है व पुरुषार्थ के समान कोई मित्र नहीं है। पुरुषार्थ सहीं व गलत दोनों तरह का हो सकता है। व्यक्ति सत्पुरुषार्थ करे। पानी छोटे छोटे कई गढ़ों से नहीँ निकलता बल्कि एक गहरे गड्ढे से मिकलता है। पुरुषार्थ की दिशा सही हो तो सही दिशा से फल जल्दी मिल सकता है।
गुरूदेव ने आगे फरमाया कि पुरुषार्थ में विवेक व योजना का बड़ा महत्व है। पचास नेत्रहीन व्यक्ति भी अपने सही व लक्षित स्थान पर पहुँच सकते है, यदि ड्राईवर आँखों वाला हो तो। जहां आँखें व पाँव दोनों हों व दोनों एक दूसरे के पूरक बन जाएं तो रास्ता पार किया जा सकता है। ऐसा कोई शब्द नहीँ जिसमें मंत्र बनने की अर्हता न हो व ऐसी कोई जड़ी-बूँटी नहीं जिससे औषध न बने। किस चीज का किस समय किस प्रकार उपयोग करना यह विवेक आवश्यक है। व्यक्ति सत्पुरुषार्थ द्वारा जीवन को सफल बना सकता है।
कार्यक्रम में अणुविभा द्वारा सम्मान समारोह का भी आयोजन हुआ।