सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
वसही भद्रेश्वर, कच्छ (गुजरात),संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी की गुजरात यात्रा पूरे क्षेत्र में आध्यात्मिकता का एक नया आलोक प्रसारित कर रही है। प्रतिदिन नित नवीन क्षेत्रों को पावन बनाते हुए आचार्य श्री निरंतर यात्रारत है। गांधीधाम की ओर अग्रसर आचार्यप्रवर ने आज प्रातः लूणी से मंगल विहार किया और लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर वसही के भद्रेश्वर जैन तीर्थ में प्रवास हेतु पधारे। चारित्रआत्मा अपने आप में जंगम तीर्थ के समान होते है। परमपूज्य गुरूदेव की सन्निधि प्राप्त कर भद्रेश्वर तीर्थ पवनता को प्राप्त हुआ। इस दौरान स्थानीय प्रबंधकों ने अणुव्रत अनुशास्ता का भावभीना स्वागत किया।मंगल प्रवचन में आगम वाणी फरमाते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा – जिसके पास क्षमा रूपी अस्त्र उसका कोई कुछ क्या बिगड़ सकता है ? कोई कुछ भी बोले, कुछ भी करे मुझे शांति रखनी है यह चिंतन होना चाहिए। कोई किसी को गालियां दे ओर सामने वाला कुछ न बोले तो बोलने वाला व्यक्ति भी शांत हो सकता है। जैन आगम में सर्व प्राणियों के साथ मैत्री की बात आती है। सबके साथ मैत्री किसी से कोई वैर नहीं। केवल मनुष्यों के साथ ही नहीं, अपितु छोटे प्राणी, कीड़े, मकोड़ों के प्रति भी मैत्री की भावना रहे। व्यक्ति सहन करना जानता है वह सफल बन सकता है। अगर हम सहन करेंगे तो शांति में रह सकेंगे। ईंट का जवाब पत्थर से देने की बात आती है, टीट फिर टेट इंग्लिश की पंक्ति है पर यह ऊंची नीति नहीं है। यह संसार में भले शूरवीरता की बात हो सकती है पर साधना, धर्म की दृष्टि से सोचे तो ईंट का जवाब फूल से दो शांति से दो। वरना कुछ ना करे। यह धर्म की नीति है। अगर हम शांत रहेंगे तो सामने वाले व्यक्ति को भी पश्चाताप हो सकता है। अगर व्यक्ति भी बराबर बोलने लग जाएगा तो यह लड़ाई झगड़े का क्रम बन जाता है। वैर से वैर शांत नहीं होता, जैसे कीचड़ का कपड़ा कीचड़ से साफ नहीं होता। उसके लिए साफ पानी चाहिए।गुरुदेव ने आगे बताया कि हमारा धर्म है समता रखना। यह क्षमा, सहिष्णुता का चिंतन है। कोई निंदास्पद कहे तो भी भीतर में शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में 5-10 सदस्य है, घर में कभी कुछ बात हो जाएं और अगर क्षमा न हो तो बात बढ़ सकती है। इसे मौकों पर शांति रखी जाएं तो परिवार में सौहार्द बना रह सकता है। संगठन की मजबूती का आधार है सौहार्द। परस्पर सबमें हेत रहे, हिल मिल कर रहे। कोई बात हो जाएं तो आपस में बात कर उसे सही कर लेना चाहिए। समता के द्वारा व्यक्ति को अपने जीवन को सुशोभित करना चाहिए। इस अवसर पर तीर्थ की ओर से प्रवीणभाई शाकरचंद भाई शाह ने गुरुदेव का स्वागत किया।