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सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
सामागोगा, कच्छ (गुजरात) ,गुजरात राज्य की विस्तृत यात्रा के दौरान वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में देशलपुर कंठी से गतिमान हुए। दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सामागोगा में स्थित श्री ओपी जिन्दल विद्या निकेतन में पधारे। विद्या निकेतन से जुड़े हुए लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।श्री ओपी जिन्दल विद्या निकेतन परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि काम शल्य के समान और विष के समान होते हैं। कामों की प्रार्थना करने वाले अकाम भी दुर्गति को प्राप्त हो जाते हैं। पांच इन्द्रियों के पांच विषय भी हैं- शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श। इनके प्रति आसक्ति है, कामना है, आकर्षण है, राग है तो ये विष की तरह विनाश करने वाले बन सकते हैं। भोग नहीं करता, लेकिन भीतर में उन विषयों की लालसा है तो वे पदार्थों से दूर रहते हुए भी पतन की ओर गतिमान बन सकते हैं। भीतर की रागात्मक चेतना और लालसा आदमी को पतन की ओर ले जा सकती है। पदार्थों का साक्षात भोग करना और पतन को प्राप्त होना तो स्पष्ट है, किन्तु पदार्थों का सेवन नहीं करते हुए भी केवल उनकी कामना करने से भी आदमी पतन की दिशा में गति कर सकता है।अध्यात्म की साधना में इन्द्रिय विषयों के प्रति अनाकर्षण और संयम रखने को बहुत महत्त्व बताया गया है। जो आदमी साधु जीवन में रमण करने लग जाता है और भीतर से सुख की प्राप्ति होने लग जाए तो फिर पदार्थों के प्रति अनाकर्षण बढ़ सकता है। कहा गया है कि जैसे-जैसे उत्तम तत्त्व का बोध होता है, विषयों के प्रति आकर्षण समाप्त होता जाता है। साधु जीवन को प्राप्त कर लेना तो मानव जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। साधु यह ध्यान रखे कि विरक्ति इतनी मजबूत हो जाए कि वापस विषयों की ओर जाने की स्थिति ही नहीं बने।साधन, संसाधन के युग में साधु पैदल विहार करते हैं। अनेकानेक पदार्थों की उपलब्धता में भी रात्रि भोजन का त्याग, रात्रि में पानी के परित्याग की बात होती है। कोई इन बातों को पुराना भी कह सकता है। पैदल चलना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा है और इससे साधु का संयम पल जाता है। इसी प्रकार रात्रि भोजन का परित्याग स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अच्छा माना जा सकता है और साधु के नियम और व्रत के हिसाब भी यह कार्य अच्छा और आध्यात्मिक होता है।अध्यात्म को समझने में विज्ञान का सपोर्ट या सहयोग ले सकते हैं। कहीं विज्ञान को भी अध्यात्म की बातों से खोज में सहयोग मिल सकता है। साधु को भीतर से भी काम-विषयों के आसक्ति से दूर रहने हुए काम-विषय रूपी शल्य और विष से बचने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन करते हुए साधु-साध्वियों व समणियों को विविध प्रेरणाएं प्रदान की। मुनि चन्द्रप्रभजी व मुनि कैवल्यकुमारजी ने आचार्यश्री की अनुज्ञा से लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने मुनिद्वय को 21 कल्याणक बक्सीस किए। उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। विद्या निकेतन की ओर से श्री संजय झा ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।