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सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
अजापर, कच्छ (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को नदगांव से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। जैसे-जैसे आचार्यश्री मर्यादा महोत्सव के लिए भुज के निकट होते जा रहे हैं, श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता जा रहा है। राजमार्ग पर गतिमान मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर अन्य लोग भी लाभान्वित हो रहे थे। जन-जन को अपने आशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर अजापर अंजार में स्थित नवकार इंटरप्राइजेज में पधारे। अपने आराध्य को अपने प्रतिष्ठान में पाकर संबंधित परिवार धन्यता की अनुभूति कर रहा था। फैक्ट्री परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में सुखी रहने के संदर्भ में कुछ बातें बताई गई हैं। इनमें पहली बात बताई गई कि अपने आपको तपाओ और सुकुमारता को छोड़ो। सुकुमारता को छोड़कर कठोरता का जीवन जीने का अभ्यास होना चाहिए। एक आदमी भौतिक सुख-सुविधाओं का खूब भोग भोगना चाहता है और दूसरा आदमी कुछ कठिनाई और कठोरता से जीवन जीने के बाद भी शांति से रह सकता है। आदमी के जीवनशैली में सुविधाओं में जीवन बीताने की मनोवृत्ति कितनी है और कम सुविधाओं में भी जीवन चलाने की मनोवृत्ति कितनी है। भौतिक साधन दुनिया में उपलब्ध हैं। आवश्यकतानुसार उनका उपयोग भी किया जा सकता है, परन्तु आदमी कुछ कठोर जीवन भी जी सके, इसका अभ्यास करना चाहिए। उदाहरण के लिए मान लिया जाए कि आदमी एसी में रहने का अभ्यास कर लिया और कभी एसी नहीं मिली तो भी उसमें भी शांति के साथ रह ले तो अच्छी बात हो सकती है।
- कार्यकर्ताओं को गांव-गांव जाकर काम करना है और कहे कि बाहर बहुत सर्दी-सर्दी है तो भला कार्य भी कैसे हो सकता है? इसलिए आदमी को अपने जीवन को कुछ कठोरता के साथ जीने का अभ्यास करना चाहिए। स्वास्थ्य की अनुकूलता का ध्यान दिया जा सकता है, किन्तु केवल भौतिक संसाधनों के भोग का प्रयास करेंगे तो जीवन अशांत ही महसूस होगा। कुछ कठोरता के साथ जीवन जीने का अभ्यास है तो जीवन सुखमय हो सकता है। दूसरी बात बताई गई कि आदमी को ज्यादा इच्छाएं रखने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी कई बार इतनी लालसा, इच्छा अभिलाषा रखने लगता है कि कई बार उन इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती तो आदमी अशांति में जा सकता है, दुःखी बन सकता है। इसलिए आदमी को ज्यादा आकांक्षा, लालसा, इच्छा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। मकान, वस्त्र, आभूषण आदि हैं तो भी ज्यादा की कामना आदमी को दुःखी बना सकती है। इसलिए यह प्रेरणा दी गई कि आदमी कामनाओं का अतिक्रमण करे तो सुखी रह सकता है। कामनाओं के अतिक्रमण से दुःख भी अतिक्रान्त हो सकता है। तीसरी बात बताई गई कि आदमी को किसी से ईर्ष्या, द्वेष नहीं करना चाहिए। कहीं आवश्यक क्रांति के रूप में विरोध हो सकता है, किन्तु ईर्ष्या भाव से विरोध करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों को सुखी देखकर दुःखी नहीं, और किसी को दुःखी देखकर खुशी नहीं मनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जलन और ईर्ष्या से बचने का प्रयास करना चाहिए। द्वेष की ग्रंथी को छिन्न करने का प्रयास करना चाहिए। चौथी बात बताई गई कि आदमी राग का अपनयन करे। राग को छोड़ना थोड़ा कठिन कार्य है। राग कई गुणस्थानों तक रहने वाला है। भोग, विषयों से युक्त राग असात्विक भी होता है। प्रशस्त राग हो अथवा अप्रशस्त राग हो सभी को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष पाने के लिए राग का परित्याग करना ही होगा। राग के समान कोई दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुखी नहीं। अपने आपको तपाकर, सुकुमारता को छोड़कर, कामनाओं का अतिक्रमण कर, द्वेष-ईर्ष्या को छोड़कर और राग भाव को दूर करने का प्रयास करे तो आदमी संसार में सुखी जीवन जी सकता है। आज के कार्यक्रम में गुजरात विधानसभा की पूर्व स्पीकर व अंजार की विधायक श्रीमती नीमाबेन आचार्य ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। गुजरात के पूर्व मंत्री श्री बासन भाई ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। आज के स्थान से जुड़े हुए श्री पवन कोठारी, श्री जयसिंह बोथरा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नन्हें बालक और बालिका क्रमशः निर्जरा और राहुल ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। श्रीमती मंजु बोथरा व श्री किशोर धारीवाल ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। फैक्ट्री के ऑनर परिवार की महिलाओं ने स्वागत गीत का संगान किया।