ग़ज़ल
कोई रात ऐसी नहीं गुज़री,
जिसमें तेरी याद न जागी हो।
चाँदनी ने ख्वाब बुन दिए,
और आँखें तुझसे भर आई हों।
यादों का समंदर गहरा इतना,
पलकों ने हर राज़ छुपा लिया।
हर लहर में चेहरा तेरा दिखा,
ज़िंदगी ने तुझसे रास्ता लिया।
रातों से रिश्ते गहरे हुए,
जब आँखें तेरी तलाश में लगीं।
यादों ने थामा साया बनकर,
जैसे ज़िंदगी धड़कनों से सजी।
अब हर रात का बस यही किस्सा,
तू यादों से देख रहा है मुझे।
इन आँखों ने तुझमें बसेरा किया,
ज़िंदगी ने तुझसे लिखा है मुझे।
‘सतविंदर कौर कहती है,’
रात, यादें और आँखों का रिश्ता,
जैसे लफ्ज़ों का कहानी से नाता।
यही यादें हैं, जो ज़िंदगी को चलाती हैं,
यही आँखें हैं, जिनमें तुम बसा करते हो।