शर्म की चादर में लिपटी मुस्कान ।
नज़रें झुकीं, चूड़ियों की खनक,
चेहरे पे शरम का सजीला गहना।
हाथों की मेंहदी, रंगों की चमक,
ख्वाबों में बसा इक अनोखा सपना।
शरारती आँखों का वो खेल,
दिल को चुपके से कर गया घायल।
चूड़ियों की खनक, हँसी की झलक,
हर पल को बना दिया वो खास पल।
गुलाबी होठों की वो हँसी,
जैसे झरनों का मीठा सा गीत।
उस पल में बसा हर एक जज़्बात,
हर धड़कन कह रही, ‘तू है अज़ीज़।’
ना आँखों से हटे ये नज़र,
हर लम्हा लगे जैसे एक समां।
तू यूँ ही सजी रहे सदा, सतविंदर
और यूँ ही महके तेरा जहाँ ।
Satwinder Kaur
Zirakpur Chandigarh
Punjab.