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Home अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में हुआ समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ हो चुका है। इस सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् बुधवार को अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रास के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता मानवता का एक गुण है और वह साधना भी होती है। मन अथवा शरीर के विपरित स्थिति आने पर भी सम भाव रखते हुए उसे सहन कर लेना एक अच्छी साधना होती है। शब्द भी कई बार ऐसे आते हैं, जो कटु होते हैं, अपमानकारक होते हैं। साधु को भी कटु शब्द सुनने को मिल सकते हैं। वहां साधु को शब्दों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बातचीत का काम पड़ता रहता है। बातचीत में कटु शब्द भी प्रयोग हो सकता है, हो सकता है कोई झूठा आरोप भी लगा सकता है। साधु को वैसे शब्दों और उसे सहने का प्रयास करना चाहिए। आज दो अक्टूबर है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का यह सात दिन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अणुव्रत से जुड़ी हुई संस्थाएं अहिंसा, नैतिकता व नशामुक्ति का यथासंभव प्रचार-प्रसार करती रहें। आदमी यह प्रयास करे कि उसके जीवन में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। आदमी की भाषा में, विचार में, व्यवहार में अहिंसा का भाव बना रहे। आज का दिन महात्मा गांधी से भी जुड़ा हुआ है। अहिंसा एक प्रकार की भगवती है, माता है, जीवनदाता है। अहिंसा मानों सभी प्राणियों को अभय बना देती है। अहिंसा शौर्य, वीर्य और बलवती हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नवरात्र में नौ दिनों होने वाले आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने के उपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। ‘सादर स्मरण शासनमाता भाग-2’ शासनश्री साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयम्बिल अनुष्ठान के विषय में जानकारी दी। अहिंसा दिवस के संदर्भ में सूरत के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुम्बई के घाटकोपर उपाश्रय के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
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Previous: सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर दो आध्यात्मिक महापुरुषों का आत्मीय मिलन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारम्भ, महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी, संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण वेसु, सूरत (गुजरात) , मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा। श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई। महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया। हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है। मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ। अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।Next: अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , आश्विन माह के शुक्लपक्ष में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नौ दिनों तक आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है तो दूसरी ओर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम भी संचालित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इन विभिन्न आध्यात्मिक उपक्रमों से जुड़कर श्रद्धालु अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व भर इस समय शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना का क्रम भी चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार अलग-अलग रूपों में मनाया जा रहा है। गुजरात प्रदेश में इन नौ दिनों में दुर्गापूजा के साथ-साथ गरबे की धूम भी देखने को मिलती है। गुजरात राज्य के डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्यश्री के साथ उपस्थित जनता ने मंगल प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी। लगभग आधे घंटे के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो तत्त्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है तो शरीर पुद्गल है। चेतन और अचेतन दोनों का योग होना ही जीवन है। आत्मा और शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है। चेतन का अचेतन के साथ वियोग हो जाना मृत्यु हो जाती है। आत्मा हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाए, वह मोक्ष हो जाता है। स्थूल शरीर के सिवाय दो शरीर और होते हैं। उनमें एक होता है तैजस शरीर है। उससे भी सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण शरीर उसे कर्म शरीर भी कहा जाता है। आयारो में कहा गया है कि कर्म शरीर को प्रकंपित करो। ज्ञातव्य है कि यह कार्मण शरीर ही जन्म-मरण का कारण है। आदमी के जीवन में होने वाले प्रत्येक सुख-दुःख हर्ष-विसाद आदि का मूल कारण कार्मण शरीर होता है। इसलिए इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। आदमी ज्ञान और संयम के द्वारा इसे कमजोर कर सकते हैं। आदमी के पास सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है तो इस कारण शरीर को प्रकंपित किया जा सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन को पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, जितना हो संभव हो सके, उसके शुद्धिकरण का प्रयास करें। जितना संभव हो सके पेड़-पौधों को लगाने का प्रयास करें। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अहिंसा और संयम-ये दो तत्त्व रहते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। यह मानव जीवन के व्यवहार के साथ जुड़ा रहे। वृक्षों को अनावश्यक न काटा जाए, इसके लिए आगम में जागरूक किया गया है। वनस्पति और मानव में समानता की बात भी बताई गई है। वनस्पति भी प्राणी है, उसके प्रति संयम रखने का प्रयास हो। बिजली, पानी आदि का जितना संयम किया जा सके, करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा और संयम के द्वारा पर्यावरण को ही नहीं, अपनी आत्मा को भी शुद्ध बनाया जा सकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष श्री अशोक खंतग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। बालक हर्षिल बरड़िया बालसुलभ गीत को प्रस्तुति दी।