अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , आश्विन माह के शुक्लपक्ष में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नौ दिनों तक आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है तो दूसरी ओर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम भी संचालित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इन विभिन्न आध्यात्मिक उपक्रमों से जुड़कर श्रद्धालु अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व भर इस समय शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना का क्रम भी चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार अलग-अलग रूपों में मनाया जा रहा है। गुजरात प्रदेश में इन नौ दिनों में दुर्गापूजा के साथ-साथ गरबे की धूम भी देखने को मिलती है। गुजरात राज्य के डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्यश्री के साथ उपस्थित जनता ने मंगल प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी। लगभग आधे घंटे के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो तत्त्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है तो शरीर पुद्गल है। चेतन और अचेतन दोनों का योग होना ही जीवन है। आत्मा और शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है। चेतन का अचेतन के साथ वियोग हो जाना मृत्यु हो जाती है। आत्मा हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाए, वह मोक्ष हो जाता है। स्थूल शरीर के सिवाय दो शरीर और होते हैं। उनमें एक होता है तैजस शरीर है। उससे भी सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण शरीर उसे कर्म शरीर भी कहा जाता है। आयारो में कहा गया है कि कर्म शरीर को प्रकंपित करो। ज्ञातव्य है कि यह कार्मण शरीर ही जन्म-मरण का कारण है। आदमी के जीवन में होने वाले प्रत्येक सुख-दुःख हर्ष-विसाद आदि का मूल कारण कार्मण शरीर होता है। इसलिए इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। आदमी ज्ञान और संयम के द्वारा इसे कमजोर कर सकते हैं। आदमी के पास सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है तो इस कारण शरीर को प्रकंपित किया जा सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन को पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, जितना हो संभव हो सके, उसके शुद्धिकरण का प्रयास करें। जितना संभव हो सके पेड़-पौधों को लगाने का प्रयास करें। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अहिंसा और संयम-ये दो तत्त्व रहते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। यह मानव जीवन के व्यवहार के साथ जुड़ा रहे। वृक्षों को अनावश्यक न काटा जाए, इसके लिए आगम में जागरूक किया गया है। वनस्पति और मानव में समानता की बात भी बताई गई है। वनस्पति भी प्राणी है, उसके प्रति संयम रखने का प्रयास हो। बिजली, पानी आदि का जितना संयम किया जा सके, करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा और संयम के द्वारा पर्यावरण को ही नहीं, अपनी आत्मा को भी शुद्ध बनाया जा सकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष श्री अशोक खंतग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। बालक हर्षिल बरड़िया बालसुलभ गीत को प्रस्तुति दी।