


::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
चिन्तन प्रवाह (•९२०)
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
करें योग, रहें निरोग
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: योग शास्त्र के अनुसार शरीर पर मन का पड़ता है गहरा प्रभाव। इसलिए
स्वस्थ तन के साथ-साथ,
अति आवश्यक है रखना
मन को भी स्वस्थ
व
सकारात्मक स्वभाव।मन की स्वस्थता की कुंजी नहीं है ब्रांडेड वसन। अपितु है *नियमित योगासन।* *योग है स्वस्थ जीवन* *जीने की कला।* इसलिए क्यों न किया जाए नियमित योगा भला। योग द्वारा होता है सुप्त चेतना का विकास, तथा
आंतरिक शुद्धि का आभास।
होता है सूक्ष्म शरीर
व
मन की
स्वस्थता का आगाज़।हल्के हास्य के साथ-साथ यह है योग विधिः *हो जाईये शिथिलासन मे।* *कीजिए विचारों का* *अनुलोम-विलोम,* यानी *बुरे विचार बाहर,* *अच्छे विचार अंदर।* *मन होने लगेगा* *स्वस्थ और सुंदर।* *मन को* *बिठाइए आनन्दासन में,* *रखिए तन को* *वज्रासन में।* *मस्तिष्क को कराइए* *ध्यानासन।* व *होठों को मुस्कुरासन,* आदि आदि *कर सकते हैं* *अनेक प्राणायाम* *व अन्य आसन।* यों रखिए तन मन को सदा स्वस्थासन में, करके नियमित योगासन। *Health Is Wealth* *करें योग, रहें निरोग*
•••••••••••••• बनेचन्द मालू



