🌸 *ज्ञान और आचरण के मध्य सेतु है भक्ति व आस्था : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸
*-10 किलोमीटर का विहार कर टाकरखेड़े में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण*
*-आचार्यश्री ने भक्ति भावना के विकास की दी पावन प्रेरणा*
*22.06.2024, शनिवार, टाकरखेड़े, जलगांव (महाराष्ट्र) :*
एक वर्ष से भी अधिक समय से महाराष्ट्र राज्य की सीमा में विहार व प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में अपनी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र के खान्देश क्षेत्र में गतिमान हैं। खान्देश की यात्रा में शनिवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल की मंगल बेला में धरणगांव से मंगल प्रस्थान किया। धरणगांववासियों ने श्रीचरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित की। कभी धूप, कभी आसमान में छाया का क्रम जारी था। इसके साथ उमस भी अपना प्रभाव बनाए हुए थी। मानसून की आहट से पूर्व ही किसान खेती के कार्य में जुटे हुए हैं। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से कपास की खेती होती है। कई किसानों के खेतों में कपास के पौधे भी दिखाई दे रहे हैं। कई खेतों में अपनी फसलों का अंकुरण आरम्भ हुआ है। आचार्यश्री के विहार के दौरान भी अनेक किसानों ने भी दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। एक स्थान पर उपस्थित स्कूली छात्रों को आचार्यश्री ने अपनी प्रेरणा प्रदान करने के साथ ही पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
लगभग दस किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी टाकरखेड़े गांव में स्थित जिला परिषद उच्च प्राथमिकशाला में पधारे। इस प्राथमिकशाला में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में ज्ञान का महत्त्व होता है तो आचरण का भी बहुत महत्त्व होता है। जीवन में सदाचरण का नहीं होना जीवन की एक कमी होती है। ज्ञान और आचरण मानव जीवन रूपी नदी के दो किनारे हैं। ज्ञान आचरण में उतरे इसके लिए श्रद्धा, भक्ति व आस्था रूपी सेतु की आवश्यकता होती है। ज्ञान होने के उपरान्त उसके प्रति भक्ति हो जाए, आस्था दृढ़ हो जाए तो फिर वह ज्ञान आचरणगत भी हो सकता है।
आगमवाणी व गुरु के प्रति आस्था व भक्ति की भावना का होना आवश्यक होता है। एक तो आदमी व्यवहार में ऊपरी मन से दिखावा करता है और दूसरी ओर आस्था हो जाए तो वह मन से हृदय से जुड़ जाता है। किसी बात अथवा कार्य पर आंतरिक अनुराग और आस्था न हो तो उस कार्य में कमी हो सकती है। इसलिए आदमी को अपनी आस्था को दृढ़ रखने का प्रयास करना चाहिए। आस्था, भक्ति दृढ़ हो तो भक्ति की शति से आदमी आगे विकास भी कर सकता है। अपने आराध्य व साध्य के प्रति आस्था, भक्ति को दृढ़ बनाने का प्रयास होना चाहिए।
आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां के लोगों में व विद्यार्थियों में अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त विद्यालय के अध्यापक श्री बाबा साहेब पाटील व श्री जितेन्द्र पाटील ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।