🌸 सद्गुण रूपी भूषणों से शोभित हो मानव जीवन : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर पाटोदा में पधारे ज्योतिचरण
-कई दिनों की गर्मी से बरसती बूंदों व बादलों ने दी राहत
-पाटोदा की जनता ने आचार्यश्री का किया भावभीना अभिनन्दन
23.04.2024, मंगलवार, पाटोदा, बीड़ (महाराष्ट्र) :
निरंतर बढ़ने वाली गर्मी को मंगलवार की सुबह रोकने के लिए आसमान में छाए बादलों ने जब जल बरसाया तो इससे वातावरण में बढ़ता तापमान मानों क्रमशः नीचे गिरता गया। इससे आम जन से बहुत राहत की सांस ली, किन्तु समता के साधक, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ साकत से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हो चुके थे। मार्ग में आने वाली यह हल्की बरसात मानों मानवता के मसीहा को अपनी ओर से राहत पहुंचा रही थी और अपनी सेवा समर्पित कर रही थी। ऐसे बदले हुए मौसम में लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पाटोदा गांव में पधारे। उपस्थित श्रद्धालुओं के निवेदन पर आचार्यश्री का पाटोदा के स्थानक में भी जाना हुआ। वहां कुछ क्षण व्यतीत करने के उपरान्त आचार्यश्री पुनः निर्धारित प्रवास स्थल की ओर गतिमान हुए। आचार्यश्री पाटोदा के जेबीएसपी मण्डलस आर्ट एण्ड साइन्स कॉलेज के वुमेन हॉस्टल में पधारे। पाटोदा के जैन समाज व अन्य लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जन्म हैं, जहां से साधना कर सीधे मोक्ष में जाया जा सकता है। जो उत्कृष्ट साधना एक मनुष्य कर सकता है, जो उत्कृष्ट उपलब्धि एक मनुष्य कर सकता है, वह किसी अन्य योनी में संभव नहीं होता। मनुष्य यह सोचे कि मुझे मानव जीवन मिला है तो मैं अच्छा मानवता और धर्म से युक्त जीवन हो। मेरे जीवन में सद्गुण सम्पन्नता और सज्जनता रहनी चाहिए। आदमी आभूषण धारण करता है। आभूषणों से आदमी अच्छा लग सकता है, किन्तु इस मानव शरीर को सद्गुणों से विभूषित करना विशेष बात होती है। जीवन और आत्मा को विभूषित करने के लिए धार्मिक, आध्यात्मिक विभूषणों का धारण करने का प्रयास करना चाहिए।
मानव के दो हाथ होते हैं। हाथ से आदमी कितना काम करता है। खाता है, पीता है, शरीर को साफ करता है, लिखता है, कुछ पकड़ता है, कोई वजन उठाता है आदि-आदि, लेकिन इस हाथ की शोभा दान देने से, इस हाथ से किसी की आध्यात्मिक सेवा कर देना हाथ का विभूषण-आभूषण बन जाता है। इस संसार में दान का बहुत महत्त्व बताया गया है। यह लौकिक और पारलौकिक दोनों रूप में होता है। किसी अक्षम, गरीब आदमी को दान देने से मानव की दयालुता, किसी मित्र को उपहार देने से प्रीति बढ़ती है, दुश्मन को कुछ देने वैर दूर हो सकता है, नौकर को कुछ देने से उस मानव के प्रति भक्ति की भावना का विकास हो सकता है और राजा आदि को उपहार आदि देने से व्यवहार की वृद्धि होती है। कहा गया है कि दान कभी निष्फल नहीं जाता। ज्ञान का दान देना भी बहुत बड़ी बात होती है। आदमी को ज्ञान का दान भी करने का प्रयास करना चाहिए। प्राणियों को संकल्पपूर्वक बध नहीं करने का संकल्प लेकर प्राणियों को अभयदान देना।
सिर का भूषण है गुरु के चरणों में नमस्कार करना, मुंह का भूषण सत्यवाणी है, कान का भूषण आर्षवाणी, भगवद्वाणी, कल्याणीवाणी है। आदमी को श्रुत करके ज्ञान को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। हृदय का आभूषण होता है-सरलता और स्वच्छता। सरलता और स्वच्छता है तो यह हृदय का भूषण होता है। भुजाओं का भूषण उसकी सक्षमता है। किसी की आध्यात्मिक सेवा दे देना भी मानों हाथ का भूषण होता है। विजय प्राप्त कराने वाला पौरुष हो और उसका धार्मिक-आध्यात्मिक संदर्भ में उपयोग हो तो कितनी अच्छी बात हो सकती है। मुंह को साफ किया जाता है, मुंह से भाषा शिष्ट, मिष्ट और यथार्थ हो तो वाणी भी शोभित होती है। माता-पिता, गुरु व अपने से बड़ों के प्रति विनययुक्त व्यवहार हो। शिक्षण संस्थानों पढ़ने वाले विद्यार्थी ध्यान दें कि उनकी विद्या के साथ विनय का विकास हुआ है कि नहीं। विनय है तो विद्या शोभित होती है। इस प्रकार आदमी को अपने मानव जीवन को सद्गुण रूपी आभूषणों से शोभित करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के स्वागत में श्रीमती सुषमा कांकरिया, नगर अध्यक्ष श्री राजू जाधव, श्री गणेश कवड़े, श्रीमती सत्यभामा ताई डांगर, डॉ. विश्वास कदम, श्री अप्पा साहब राखव, श्रीमती सुरेश ताई व श्री संजय कांकरिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्रीमती चन्दनबाला कांकरिया व श्री समकित कांकरिया, संस्कृति श्राविका मण्डल ने अपनी-अपनी गीत का संगान किया। स्थानीय कन्या मण्डल की सदस्याओं ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।