🌸 अहमदनगर में अध्यात्म जगत के महासूर्य महाश्रमण का मंगल प्रवेश 🌸
-श्रद्धालु जनता ने शांतिदूत आचार्यश्री का किया भावभीना अभिनंदन
– ए.इ.एस. अशोक भाऊ फिरोदिया इंग्लिश मिडियम स्कूल एण्ड जूनियर कॉलेज में पधारे ज्योतिचरण
– अहिंसा, संयम व तप रूपी उत्कृष्ट मंगल में रत रहने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
– आचार्य महाश्रमण के प्रथम बार आगमन पर स्वागत में उमड़ा जन सैलाब
14.04.2024, रविवार, अहमदनगर (महाराष्ट्र) :
महाराष्ट्र के अनेक जिलों को आध्यात्मिकता से भावित बनाने वाले एवं जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल रश्मियों के साथ अहमदनगर जिला मुख्यालय में मंगल प्रवेश किया तो अहमदनगर आध्यात्मिक आलोक से आलोकित हो उठा। श्रद्धालु जनता शांतिदूत के स्वागत में उमड़ आई। आचार्य श्री महाश्रमण का शहर में प्रथम शुभागमन पर सकल समाज में अनूठा उत्साह नजर आ रहा था। जन-जन को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए भव्य स्वागत जुलूस के साथ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अहमदनगर के एकदिवसीय प्रवास के लिए ए.इ.एस. अशोक भाऊ फिरोदिया इंग्लिश मिडियम स्कूल एण्ड जूनियर कॉलेज में पधारे। इसके पूर्व प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने केडगांव से अहमनगर जिला मुख्यालय की ओर गतिमान हुए। महाराष्ट्र के अनेक जिले, गांव, कस्बा, शहर, नगर, महानगर, उपनगरों आदि को पावन बनाने के उपरान्त आचार्यश्री आज अहमदनगर में पधार रहे थे। आचार्यश्री के स्वागत में अहमदनगर की न केवल तेरापंथी जनता, अपितु अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी उत्साहपूर्वक जुटे हुए थे। जैसे-जैसे आचार्यश्री अहमदनगर के निकट होते जा रहे थे, उपस्थित श्रद्धालुओं का उत्साह भी बढ़ता जा रहा था। बढ़ती गर्मी पर श्रद्धालुओं का उत्साह मानों हावी बना हुआ था। अपनी धवल रश्मियों के साथ अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जैसे ही अहमदनगर मुख्यालय की सीमा में प्रवेश किया, उपस्थित श्रद्धालुओं ने बुलंद जयघोष के साथ भव्य स्वागत किया।
उक्त स्कूल एण्ड जूनियर कॉलेज के ऑडिटोरियम में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में सर्वप्रथम विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा आचार्यश्री के स्वागत में प्रस्तुति दी गई। समुपिस्थत जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दसवेआलियं के एक श्लोक में मानों धर्म की पूरी व्याख्या कर दी गई है। आदमी अपने जीवन में मंगल की कामना करता है। जीवन में सबकुछ अच्छा हो, ऐसी कामना स्वयं के लिए भी करता है और दूसरों के लिए भी समय-समय पर करता है। कई पदार्थों को भी मंगल के रूप में काम लिया जाता है। शुभ मुहूर्त या सगुन-अपशगुन आदि का विचार भी किया जाता है। शास्त्र में बताया गया कि दुनिया में उत्कृष्ट मंगल धर्म होता है। धर्म से बड़ा उत्कृष्ट मंगल कोई नहीं होता है। आगे बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप से युक्त धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है। आगे धर्म की महिमा को बताते हुए कहा कि धर्म में रत रहने वाले व्यक्ति को देवता भी नमस्कार करते हैं। साधु अहिंसा, संयम और तपोमूर्ति होते हैं, उन्हें देवता भी नमस्कार करते हैं। आचार्यश्री ने जैन धर्म के विषय में जानकारी देते हुए आगे कहा कि जैन शासन में अहिंसा की सूक्ष्मता से पालन की बात बताई गई है। साधु के लिए तो सर्वप्राणातिपात विरमण की बात कही गई। इसमें साधु देख-देखकर पैदल चलता है। साधु जीवन भर रात्रि भोजन और पानी का परित्याग हो जाता है। मुखवस्त्रिका आदि भी अहिंसा के सूक्ष्म पालन के लिए है। इसी प्रकार सामान्य आदमी भी अपने जीवन में अहिंसा, संयम, तप, ईमानदारी रखने का प्रयास करे। भौतिकतावाद ही सारा समय न चलाया जाए, इसलिए भौतिकता पर अध्यात्म का नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। आदमी को अपनी इच्छाओं का परिमाण करने की बात भी बताई है। आदमी को ज्यादा लालसा और आंकाक्षा से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी सदैव अपने मन को अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म में लगाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए फिरोदिया विद्या संस्थानों के विद्यार्थियों में खूब अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के स्वागत में अहमदनगर एजुकेशन सोसायटी की प्रमख कार्यवाहक श्रीमती छाया फिरोदिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर संघ, माणिकपुर नगर की ओर श्री अशोक मूथा, श्रीमती संगीता बच्छावत, श्री सुभाष नाहर, श्री यश पटावरी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। छत्रति संभाजीनगर तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने आचार्यश्री स्वागत में गीत का संगान किया।