🌸 समय को श्रेष्ठ बनाने का हो प्रयास – आचार्य महाश्रमण🌸
–नवसंवत्सर के शुभारम्भ के दिन जैन परंपरा के दो संतो का आध्यात्मिक मिलन
09.04.2024, मंगलवार, शिरूर, पुणे (महाराष्ट्र) :चैत्र शुक्ला प्रतिपदा। भारतवर्ष में हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2081 का शुभारम्भ। इसे देश के कहीं गुड़ी पड़वा तो कहीं बिहु तो कहीं वैशाखी आदि के नाम से भी मनाया जाता है। साथ-साथ ही चैत्र नवरात्र का शुभारम्भ। प्राकृति नवीनता के साथ ही भारत ही नहीं पूरे विश्व में शक्ति की उपासना का नौ दिवसीय उपक्रम भी प्रारम्भ होता है। ऐसे आध्यात्मिक माहौल में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य की मंगल सन्निधि में मंगलवार को नववर्ष के मंगलपाठ का आयोजन हुआ। आध्यात्मिक गुरु से नववर्ष का मंगलपाठ श्रवण करने के लिए स्थानक में काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। साथ ही आज आचार्यश्री का स्थानकवासी श्रमण के मंत्री कमल मुनि ‘कमलेश’ से आध्यात्मिक मिलन भी हुआ। यह अवसर जैन परंपरा के दोनों आम्नायों को प्रसन्नता प्रदान करने वाला था। कमल मुनि ‘कमलेश’ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के अगवानी में लगभग एक किलोमीटर आगे भी पधारे। दोनों संतों का आध्यात्मिक मिलन से महाराष्ट्र की धरा मानों धन्यता की अनुभूति कर रही थी। मंगलवार को विक्रम संवत 2081 के शुभारम्भ के साथ वासंतिक नवरात्र का भी प्रारम्भ हुआ। प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ सरदवाड़ी से मंगल प्रस्थान किया। आज का विहार लगभग छह किलोमीटर का ही था, किन्तु आज शिरूर में जैन परंपरा के दो आम्नायों के संतों का आध्यात्मिक मिलन भी होने वाला था, इसे लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह नजर आ रहा था। नववर्ष के शुभारम्भ पर ऐसा अवसर पर शिरूरवासी प्रफुल्लित नजर आ रहे थे। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानकवासी श्रमण संघ के मंत्री कमल मुनि ‘कमलेश’ अपने शिष्यों के साथ शिरूर से लगभग एक किलोमीटर पहले ही आकर आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया। दोनों आध्यात्मिक संतों का मिलन सभी के मन को आह्लादित कर रहा था। श्री संघ से जुड़े श्रद्धालु ही नहीं, अन्य संप्रदाय की जनता तथा स्थानीय विधायक व पूर्व सांसद भी आचार्यश्री का शिरूर में सादर स्वागत किया। कुल छह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री शिरूर में स्थित स्थानक में पधारे। मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा – ज्ञान एक पवित्र तत्व है और विशेषकर आध्यात्मिक व धार्मिक ज्ञान ओर ज्यादा महत्वपूर्ण व पवित्र होता है। किसी भी ज्ञान व पठन के लिए स्थान, ज्ञान की सामग्री जैसे पुस्तक आदि व इनके साथ ही ज्ञान की जिज्ञासा व ज्ञान दाता का होना जरूरी होता है। अध्ययन करने के चार लाभ है। जैसे पहला - ज्ञान की प्राप्ति। जिस विषय का ज्ञान प्राप्त करना हो उस विषय का अध्ययन करना जरूरी होता है। वकील को वकालत का, धार्मिक को धर्म का तथा जिसको जिस विषय का ज्ञान करना हो, उसका अध्ययन करना पड़ता है। धार्मिक ज्ञान हमारे जीवन को आत्म कल्याण की दिशा प्रदान करता है। अध्ययन का दूसरा लाभ है कि उससे चित व मन एकाग्र बनता है। तीसरा व चौथा लाभ है कि व्यक्ति ज्ञान द्वारा खुद सन्मार्ग में स्थित हो जाता है व दूसरों को भी सन्मार्ग में स्थित करने का प्रयास कर सकता है। गुरुदेव ने आगे फरमाया की पढने की व अध्ययन की कोई उम्र नहीं होती। दादा भी पढ़ सकता है व पोता भी। आज विक्रम संवत का पहला दिन है और हम नौवे शतक में प्रवेश कर चुके हैं। जैसे पानी के बहाव को नहीं रोका जा सकता वैसे ही, समय को भी नहीं रोका जा सकता और उसे रोकें भी क्यों ? बस हमें समय का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आज का दिन आगे आने वाले समय को योजनान्वित करने का दिन है। हमारा आगे आने वाला समय श्रेष्ठ बने ऐसा प्रयास आज ही से शुरू हो जाना चाहिए। स्थानकवासी संत कमल मुनि ‘कमलेश’ ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी से काफी वर्षों के बाद आज मिलना हुआ है। पूर्व में भी आचार्यश्री तुलसी के समय में मिलना हुआ है। आज अपका यहां पदार्पण हुआ है। आपकी सन्निधि में जैन एकता का इतना अवसर यहां के लोगों को प्राप्त हुआ है। स्कूल की ओर श्री शिरीष बरमेचा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।