🌸 समतापुरुष महावीर से समता की लें प्रेरणा : भगवान महावीर के प्रतिनिधि महाश्रमण 🌸
-करीब 12 किलोमीटर का विहार कर थेरला में पधारे ज्योतिचरण
-जिला परिषद माध्यमिक शाला पूज्यचरणों से हुआ पावन
-आचार्यश्री के स्वागत में गांव के सरपंच व प्रिंसिपल ने किया भावपूर्ण स्वागत
24.04.2024, बुधवार, थेरला, बीड़ (महाराष्ट्र) :बरसात के बाद आसमान में बादलों की आवाजाही के कारण बुधवार को भी बीड़ जिले का मौसम प्रायः खुशनुमा बना रहा। बुधवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पाटोदा से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग के दोनों खेतों में लगी फसलें किसानों की मेहनत को दर्शा रही थीं। कृषि प्रधान देश के प्रत्येक भूभाग में अलग-अलग प्रकार की मिट्टी, भौगोलिक स्थिति और वातावरण के अनुकूल फसलों को उगाया जाता है। मार्ग के आसपास स्थित खेतों में लगी फसलें और दूर-दूर तक जगह-जगह लगाई गई पवनचक्कियां लोगों को ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। इन पवनचक्कियों के माध्यम से विद्युत उत्पादन का कार्य किया जाता है। मार्ग में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को आशीष प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर थेरला गांव में स्थित जिला परिषद माध्यमिक शाला में पधारे। जहां गांव के सरपंच आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री ने सरपंच के निवेदन पर गांव में पधारे और ग्रामीणों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। माध्यमिक शाला परिसर में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने एक श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा कि महावीर को नमस्कार किया गया है। प्रश्न हो सकता है कि कौन-से महावीर को नमस्कार करना चाहिए। किसी व्यक्ति, स्थान आदि के नाम के महावीर को नहीं, जिनका मन समतामय था, ऐसा समतापुरुष महावीर को नमस्कार किया गया है। उदाहरण देते हुए बताया गया कि समतापुरुष भगवान महावीर का चण्डकौशिक सर्प ने उनके चरण को काटा तो वे गुस्से में नहीं आए, आवेश में नहीं आए, समता में रहे। दूसरी और देवेन्द्र ने भी भगवान महावीर का चरणस्पर्श किया तो भी समतापुरुष महावीर समभाव में रहे। उन्हें उसका कोई अहंकार नहीं हुआ। ऐसे भगवान महावीर को नमस्कार, वंदन किया जाता है। भगवान महावीर बाल्यावस्था में शिक्षा ग्रहण करने को गए, कुछ ही समय में छुट्टी भी हो गई। वे अपने जीवनकाल में गृहस्थावस्था में भी प्रवेश किया था। अपने माता-पिता के देहावसान के बाद उन्होंने दीक्षा की भावना प्रकट की थी। माता-पिता के देहावसान के दो वर्ष बाद उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। लगभग तीस वर्ष की अवस्था के उपरान्त वे साधना के पथ पर आगे बढ़े। मृगशिर कृष्णा दसमी को वे पंच मुष्ठि लोच कर साधु बन गए। ऐसे भगवान महावीर जो समता के साधक हैं, उनको नमस्कार किया जाता है। जैन शासन जो भगवान महावीर से संबद्ध हैं। उनकी वाणी तो सभी के लिए कल्याणकारी है। ऐसे महापुरुषों की कल्याणीवाणी का श्रवण कर अपने जीवन का कल्याण किया जा सकता है। जितने भी संत-महापुरुष हुए हैं, उनकी सच्ची और अच्छी वाणी को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। भगवान महावीर से प्रेरणा लेकर हम सभी को समता की साधना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त थेरला के सरपंच श्री बाला साहब राव, माध्यमिक शाला के प्रिंसिपल श्री प्रताप कालेसर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।