🌸 मानव का सबसे बड़ा शत्रु उसकी आत्मा : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री ने अपनी आत्मा को धर्म के मार्ग पर लगाने को किया उत्प्रेरित
-ग्यारह किलोमीटर का विहार पीठी में पधारे तेरापंथ के सरताज
25.04.2024, गुरुवार, पीठी, बीड़ (महाराष्ट्र) :
कई दिनों तपन के बाद प्रकृति ने अपना मिजाज बदला और गत दो दिनों से आसमान में छाए बादलों से होने वाली वर्षा के कारण वातावरण शीतल हो गया है। बुधवार की रात में बरसात हुई। बरसात थम जाने के बाद भी गुरुवार को भी प्रातःकाल में भी आसमान में बादल छाए थे, इस कारण सूर्य की किरणें धरती पर नहीं आ पा रही थीं, यहीं कारण था कि वातावरण में शीतलता अपना स्थान बनाए हुए थी। गुरुवार को प्रातःकाल के शीतल वातावरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ थेरला गांव से मंगल प्रस्थान किया। शीतल वातावरण और ठंडी हवा यात्रा को अनुकूलता प्रदान कर रही थी। मार्ग में अनेक स्थानों पर ग्रामीणों को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर पीठी गांव में पधारे। गांव में स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र में पावन प्रवास हेतु पधारे।
यहां उपस्थित श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में मित्र भी मिल सकते हैं तो शत्रु भी मिल सकते हैं। हम एक अपेक्षा से व्यवहार की भाषा में किसी को अपना मित्र तो किसी को अपना शत्रु भी मान सकते हैं। व्यवहार के आधार पर आदमी ऐसा चिंतन बनाता है, परन्तु धर्म का सिद्धांत कहता है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं की आत्मा है, दूसरा कोई अन्य नहीं। अपनी आत्मा अपनी आत्मा का जितना नुक्सान कर सकती है, उतना कोई और शत्रु नहीं कर सकता। बाह्य शत्रु तो ज्यादा से ज्यादा आदमी के वर्तमान शरीर को गला काटकर नष्ट कर देता है, परन्तु आदमी की आत्मा जब दुश्मन बनती है तो उसके कारण आदमी को कितने जन्मों तक कष्ट भोगना पड़ सकता है, यातनाएं झेलनी पड़ सकती हैं। दयाविहीन, धर्म नहीं करने वाले, अहिंसा, संयम और तप में रुचि नहीं लेने वाली दुरात्माएं मानव को अनेक जन्मों तक प्रताड़ित करने वाली बन सकती हैं।
इसलिए आदमी को बुरे कार्यों से बचते हुए अपनी आत्मा को धर्म, अध्यात्म, अहिंसा, संयम, तप, साधना, सेवा आदि मंे लगाकर धर्म का आचरण कर स्वयं को दुर्गति में जाने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म का पालन करने पर स्वयं की आत्मा सदात्मा बन सकती है और आत्मा कल्याणकारी बन सकती है। आदमी की अगली गति ऊर्ध्व दिशा में हो सकती है। एक चींटी भी पैर के नीचे न आए, कोई पशु कहीं विश्राम कर रहा हो, पक्षी दाना खा रहे हों तो उन्हें भी कष्ट न हो, इसका ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी ध्यान दे कि किसी भी प्राणी को अपनी ओर से पीड़ा पहुंचाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन में धर्म के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने पीठी ग्रामवासियों को भी पावन आशीर्वाद प्रदान किया। पीठी गांव के सरपंच ने अपनी भावांजलि अर्पित की।