🌸 पंचदिवसीय प्रवास कर वर्धमान सांस्कृतिक भवन से वर्धमान के प्रतिनिधि का पावन प्रस्थान 🌸
-पुणे शहर के मध्य पांच दिनों तक अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर ज्योतिचरण ने चरण किए गतिमान
-13 कि.मी. का विहार कर कल्याणी नगर का कल्याण करने पधारे तेरापंथ सरताज
-दुर्लभ मानव को सुफल बनाने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-हर्षित श्रद्धालुओं ने भी अपने भावनाओं को दी अभिव्यक्ति
03.04.2024, बुधवार, कल्याणी नगर, पुणे (महाराष्ट्र) :सूचना प्रद्योगिकी, तथा अन्य उद्योगों में अग्रणी महाराष्ट्र के प्रमुख शहर पुणे शहर के मध्य पांच दिनों तक अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर जनता के मानस को मानवता का अभिसिंचन प्रदान करने के उपरान्त बुधवार को पुणे शहर के मध्य स्थित वर्धमान सांस्कृतिक भवन से वर्धमान के प्रतिनिधि, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान सरताज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को मंगल प्रस्थान किया। ऐसे महामानव के प्रति अपने कृतज्ञ भावों को अर्पित करने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। जनता पर अपने दोनों कर कमलों से आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। आचार्यश्री के चरणों का स्पर्श पाकर पुणे शहर का मानों कण-कण आध्यात्मिक आलोक से जगमगा रहा था। लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण पुणे शहर के बाहरी भाग में स्थित कल्याणी नगर में पधारे। श्री रतनलाल दूगड़ के निवास स्थान मगन कुंज में आचार्यश्री का पावन प्रवास हुआ। ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर दूगड़ परिवार आह्लादित नजर आ रहा था। यहां आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री के पावन संबोधन से पूर्व तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव जन्म दुर्लभ है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। जिस मानव जन्म को शास्त्रों में दुर्लभ कहा गया है, वह वर्तमान में हम सभी को प्राप्त है, अर्थात् हम सभी परम भाग्यशाली हैं, जो हमें मानव जीवन प्राप्त है। मनुष्यों का चिंतन है कि जब दुर्लभ मानव जीवन प्राप्त है तो फिर इसका कैसा लाभ उठाया जाए। मानव जीवन में अध्यात्म जगत की जो ऊंचाई प्राप्त की जा सकती है, वह किसी अन्य जीवन में नहीं प्राप्त हो सकती है। केवलज्ञान की प्राप्ति केवल मनुष्य को ही हो सकती है, मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य जन्म से ही हो सकती है, अन्य किसी जीवन से नहीं हो सकती। ऐसे दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण जीवन को सुफल बनाने के लिए और मोक्ष की दिशा में गति करने के लिए आदमी को प्रयास करना चाहिए। इसके लिए बताया गया कि इस मानव जीवन को एक वृक्ष मान लिया जाए तो इसमें चार प्रकार का फल लगाने का प्रयास करना चाहिए। पहला फल बताया गया कि जिनेन्द्र की पूजा करने का प्रयास हो। तीर्थंकर, अर्हतों की स्तुति और पूजा की जाती है। नमस्कार महामंत्र के द्वारा जिनेश्वर भगवान की पूजा करनी चाहिए। दूसरा फल बताया गया कि आदमी को सुगुरु की पर्युपासना करने का प्रयास करना चाहिए। जब जैसा अवसर मिले, अपने गुरु की उपासना करने का प्रयास करना चाहिए। जिसको भी गुरु मानो, उसके इंगित, अनुशास्ता मंे रहने का प्रयास करना चाहिए। तीसरी बात बताई गई कि आदमी को हर प्राणी के प्रति दया और अनुकंपा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, आदमी को अहिंसा का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। मेरे द्वारा किसी भी जीव-जन्तु को कष्ट न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। कीड़े-मकोड़ों को भी कष्ट न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को दया और अनुकंपा के भावों को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। चौथी बात बताई गई कि गुणों के प्रति प्रमोद भाव हो। जो गुणीजन हैं, उनके गुणों की पूजा गुणवान की पूजा करने का प्रयास हो। उनके प्रति अनुराग का भाव हो। आदमी को धार्मिक और कल्याणीवाणी को सुनने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार मानव जीवन को सुफल बनाया जा सकता है तथा मोक्ष की दिशा में गति भी की जा सकती है। आचार्यश्री ने कहा कि दूगड़ परिवार में खूब धार्मिक संस्कार बने रहें। आचार्यश्री के स्वागत में श्री विनोद दूगड़, श्रीमती सरला नाहटा, श्रीमती वर्षा नाहटा, श्री मनोज संकलेचा, मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री सुधीर घेमावत ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।