🌸 सच्चाई और ईमानदारी से युक्त हो मानव जीवन : मानवता के मसीहा महाश्रमण 🌸
-13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे कोरेगांव भीमा
-न्यू लाईफ आयुर्वेद हॉस्पीटल में हुआ शांतिदूत का पावन प्रवास
05.04.2024, शुक्रवार, कोरेगांव भीमा, पुणे (महाराष्ट्र) :भारत की आर्थिक राजधानी, भारत में पश्चिमी देशों के प्रवेश द्वार तथा मायानगरी आदि अनेक उपनामों से युक्त महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में चतुर्मास, मर्यादा महोत्सव महनीय आयोजनों सहित दीर्घकालीन प्रवास करने के उपरान्त कोंकण क्षेत्र को भी पावन बनाकर सह्याद्रि पर्वत माला को पाकर पुणे शहर को आध्यात्मिकता से भावित बना जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य वर्तमान में महाराष्ट्र के सुदूर क्षेत्रों भी आध्यात्मिकता का आलोक बांटते हुए गतिमान हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वाघोली से मंगल प्रस्थान किया। दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही धूप के बावजूद भी शांतिदूत जनकल्याण के लिए गतिमान हैं। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ कोरेगांव भीमा में स्थित अल-आमीन एजुकेशन फाउण्डेशन द्वारा संचालित न्यू लाईफ आयुर्वेद हॉस्पीटल में पधारे। यहां आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जैन धर्म में 18 पाप की प्रवृत्तियां बताई गई हैं। ये सभी प्रवृत्तियां पाप का बंध कराने वाली होती हैं। इनमें दूसरा पाप है मृषावाद अर्थात् झूठ बोलना। आदमी राग-द्वेष के कारण झूठ भी बोल सकता है। झूठा दोषारोपण भी दूसरों पर कर सकता है। प्रश्न हो सकता है कि आदमी मृषावाद का प्रयोग क्यों करता है? इस संदर्भ में शास्त्रकार ने कहा कि आदमी मृषावाद का प्रयोग आत्मार्थ या परार्थ के लिए करता है अर्थात् स्वयं के विकास के लिए, अपनी जान बचाने के लिए अथवा दूसरों को फंसाने के लिए झूठ बोल सकता है। आदमी गुस्से में झूठ बोलता है, भय के चलते भी झूठ बोल सकता है। सामान्य गृहस्थ इस बात ध्यान रखें कि कोई ऐसा झूठ न बोलें, जिसके कारण दूसरे की हिंसा हो जाए। आदमी को झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। न्यायालय में किसी पर झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए। झूठा दोष लगाना पाप होता है। ऐसा झूठ जो हिंसा का कारण बन जाए, किसी को कष्ट सहना पड़े, किसी का नुक्सान हो जाए, यह बहुत गलत कार्य हो जाता है। आदमी को सच्चाई के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई के सामने कठिनाई भले आ सकती है, किन्तु आदमी को सत्पथ पर भी चलने का प्रयास करना चाहिए। शत प्रतिशत झूठ से बचकर रहना कठिन हो सकता है, किन्तु आदमी जितना संभव हो, उतना सच्चाई के मार्ग पर ही चलने का प्रयास करना चाहिए। साधु के तीन करण तीन योग से झूठ का त्याग होता है। आदमी मुख से खाता-पीता भी है और मुख से बोलता भी है। मुख को साफ करने के लिए आदमी मंजन, दातून आदि करता है, कुल्ला आदि करता है। मुंह को साफ रखने के लिए कटु और झूठ बोलने से बचना और अखाद्य का सेवन नहीं करना भी मुख को साफ और शुद्ध बनाने की दूसरी विधि है। भय, आक्रोश, लोभ अथवा हंसी-मंजाक में भी झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। व्यापार हो, धंधा हो, न्यायालय की बात हो अथवा घर की बात हो, टैक्स आदि की बात हो, वहां भी आदमी को सच्चाई रखने का प्रयास करना चाहिए। चोरी अथवा झूठ बोलने, लिखने से बचने का प्रयास हो। जीवन में ईमानदारी और पारदर्शिता रखने का प्रयास करना चाहिए। धार्मिक कार्यों से जुड़ी संस्थाओं को गलत ढंग से पैसे आदि के संग्रहण से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
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