🌸 धार्मिक-आध्यात्मिक रूप में हो पंचेन्द्रियों का सदुपयोग : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-पुणेवासियों को अपने इन्द्रियों के दुरुपयोग से बचने को महातपस्वी महाश्रमण ने किया अभिप्रेरित
-सांसद और विधायक ने भी आचार्यश्री के स्वागत में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति
-जैन धर्म के अनेक संप्रदाय के लोगों ने दी अपनी भावाभिव्यक्ति
01.04.2024, सोमवार, पुणे (महाराष्ट्र) :
महाराष्ट्र में आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा प्रवाहित करने वाले, जन-जन को मानवता का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में महाराष्ट्र व भारत राष्ट्र के एक प्रमुख शहर पुणे में विराजमान हैं। आचार्यश्री का प्रवास आधुनिक रूप से अग्रणी शहर की जनता को आध्यात्मिक स्पंदन से प्रभावित कर रही है। तभी तो आचार्यश्री के की मंगलवाणी का श्रवण करने के लिए प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं।
पुणे प्रवास के दौरान सोमवार को मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुणे की जनता को सिमंधर समवसरण से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे शरीर में पांच इन्द्रियां हैं- श्रोत्रेन्द्रिय, घ्रणेन्द्रिय, चक्षुरेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। ये पांचों इन्द्रियां अपने प्रतिनियत विषयों का ग्रहण करती हैं। इस संदर्भ में तीन बातें हैं- इन्द्रिय, इन्द्रिय का विषय और इन्द्रिय का व्यापार अर्थात् प्रवृत्ति। जैसे कान इन्द्रिय है, उसका विषय शब्द तथा सुनना उसकी प्रवृत्ति है। कान के द्वारा आदमी आवाज को सुनता है और उसे ग्रहण करता है। इसी प्रकार चक्षु है तो उसका विषय रूप होता है तथा उसका व्यापार है देखना। इसी प्रकार घ्राण का विषय गंध और उसकी प्रवृत्ति है सूंघना। जिह्वा का विषय है रस और उसका व्यापार है स्वाद का अनुभव करना। स्पर्श इन्द्रिय का विषय है स्पर्श और उसका व्यापार है छूना। इन पांचों इन्द्रियों से ज्ञान भी हो सकता है और भोग भी हो सकता है। इससे केवल ज्ञान भी ग्रहण भी किया जा सकता है और उससे विषयों का भोग भी हो सकता है। इनमें भी श्रोत्र और चक्षु को कामी इन्द्रियां कहा गया है। शेष तीन भोगी इन्द्रियां माना गया है। इस प्रकार पांच इन्द्रियों को दो भागों में विभक्त किया गया है।
श्रोत्र और चक्षु रूपी दो इन्द्रियां ज्ञान प्राप्ति के लिए भी सक्षम माध्यम बनती हैं। आदमी सुनकर कल्याण और अहित को जान लेता है। सुनने से शास्त्रों आदि का भी ज्ञान हो सकता है। चक्षु के द्वारा उस विषय को देखने और शास्त्रों आदि को पढ़कर भी ज्ञान का विकास किया जा सकता है। इसलिए श्रोत्र और चक्षु के द्वारा जितना ज्ञान अर्जन किया जा सकता है, संभवतः अन्य तीन इन्द्रियों से उतनी मात्रा में ज्ञान का अर्जन नहीं कर सकता। प्रवचन को सुनकर श्रोता कितने ज्ञान का अर्जन कर सकता है। साधु-संतों के दर्शन से भी आदमी का कितना कल्याण हो सकता है। पांचों इन्द्रियों का धार्मिक-आध्यात्मिक रूप में प्रयोग करने का सुप्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। श्री तरुण मोदी ने आचार्यश्री के स्वागत में गीत का संगान किया। पूना व्यवस्था समिति के संयोजक श्री महेन्द्र मरलेचा, मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री राजेन्द्र बांठिया, श्री अभय छाजेड़, स्थानकवासी समाज की ओर से श्री प्रवीणभाई, श्री फतेहचन्द रांका, तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री महावीर कटारिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
स्थानीय सांसद श्रीमती मेघाताई कुलकर्णी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि पूरे देश में ज्ञान की गंगा बहाते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी पुणे में पधारे हैं। मैं आपका बहुत-बहुत स्वागत करती हूं। विधायक श्रीमती माधुरीताई ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को पुनः अपनी मंगलवाणी से पावन आशीर्वाद प्रदान किया। पुणे क्राइम ब्रांच के एसीपी श्री अनिल पुण्डरिक ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया।