🌸 स्व-परहित के लिए श्रवणशक्ति का हो सदुपयोग : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने पुणे नगरी में प्रवाहित की ज्ञान की गंगा
-क्या, क्यों और कैसे सुनने की कला को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-पुणेवासियों ने अपने आराध्य के स्वागत में दी अनेक प्रस्तुतियां
30.03.2024, शनिवार, पुणे (महाराष्ट्र) :भारत के छठे बड़े शहर, महाराष्ट्र की सांस्कृति राजधानी, पूरब का ऑक्सफोर्ड आदि के नाम से विख्यात मुला और मूठा नदियों के तट पर बसे पुणे शहर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के आगमन से ही मानों आध्यात्मिकता का वातावरण छाया हुआ है। आचार्यश्री के मंगल दर्शन और आचार्यश्री के द्वारा प्रवाहित की जाने वाली ज्ञानगंगा से पुणेवासी स्वयं के जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। पुणे शहर के वर्धमान सांस्कृति केन्द्र में प्रवासित वर्धमान के प्रतिनिधि, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुणेवासियों को सिमंदर समवसरण से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में सुनने की क्षमता होती है। कर्णेन्द्रिय के सक्षम होने से आदमी कितनी चीजों को सुनता है। प्रश्न हो सकता है कि क्या सुनना चाहिए, क्यों सुनना चाहिए और कैसे सुनना चाहिए? जानकारी होने के बाद किया गया कार्य अच्छे ढंग से हो सकता है। संतों के अच्छे प्रवचन सुनने को मिल सकती है, अच्छे भक्तियुक्त भजन भी सुना जा सकता है और भी अच्छी बातें सुनी जा सकती हैं। वर्तमान समय में सुनने की संभवतः अधिक सुविधाएं प्राप्त हो गयी हैं। पहले किसी संत की वाणी सुनना चाहता था तो उनके पास जाना पड़ता था, किन्तु अब तो टीवी, मोबाइल, इण्टरनेट आदि के माध्यम से कभी भी और कहीं भी सुना जा सकता है। आदमी को किसी की निंदा, बुराई अथवा बुरी बातों को सुनने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी बुरी बातों को सुनने में अपना कीमती समय क्यों लगाएं। उसके स्थान पर आदमी को उपयोगी बातों को सुनने का प्रयास करना चाहिए। जो जीवन के हितकर और कल्याणकारी हो, ऐसी बातों को सुनने का प्रयास करना चाहिए। किसी दुःखी का दुःखड़ा सुनने का प्रयास करना चाहिए। यदि हो सके तो उसकी कठिनाई में यत्किंचित सहयोग दे सकते हैं तो दिया जा सकता है न भी हो तो उस दुःखी का दुखड़ा सुन लेने का प्रयास होना चाहिए। छोटे साधु-साध्वियों द्वारा सीखे जा रहे श्लोकों और मंत्रों आदि को बड़े चारित्रात्मा सुन लें तो उससे उनकी गलती भी अच्छी की जा सकती है और बड़े चारित्रात्मा का रिविजन भी हो सकता है। इस प्रकार जिसे सुनने से स्वयं लाभ मिले अथवा दूसरों को लाभ प्राप्त हो ऐसी चीजों को सुनने का प्रयास करना चाहिए। श्रोता और वक्ता का जिससे लाभ मिले, ऐसा सुनना अच्छा हो सकता है। स्व-परहित के लिए आदमी को सुनना चाहिए। जीवन में सुनने की कला भी होती है। सुनने के लिए आदमी में इच्छा होनी चाहिए। आदमी को मन से सुनने का प्रयास करना चाहिए। इस तरह आदमी श्रवण के द्वारा कल्याण को जान सकता है और कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने पुणे में चतुर्मास करने वाली साध्वी उज्जवलप्रभाजी सहित उनके सहवर्ती साध्वियों को पावन आशीष प्रदान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने भी पुणेवासियों को उद्बोधित करते हुए जीवन में विकास करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री धर्मेन्द्र चोरड़िया, वर्धमान सांस्कृतिक केन्द्र के अध्यक्ष श्री बालचंद संचेती ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने किशोरों की प्रार्थना पर श्लोक के रूप में पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए उसका भावार्थ भी प्रदान किया। अपनी सुगुरु की ऐसी कृपा प्राप्त कर किशोर भावविभोर नजर आ रहे थे। तेरापंथ महिला मण्डल तथा तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के सदस्यों ने भी अपनी-अपनी प्रस्तुति दी।