🌸 पिंपरी चिंचवड़ को आध्यात्मिक सिंचन प्रदान कर गतिमान हुए ज्योतिचरण 🌸
– आचार्य श्री के दर्शनार्थ पहुंचे महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री श्री अजीत पंवार
– सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करे मानव : युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
– श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
27.03.2024, बुधवार, भोसरी, पुणे (महाराष्ट्र) :पिंपरी चिंचवड़ में चार दिनों तक अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर जन-जन के मन को आध्यात्मिक सिंचन प्रदान करने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पिंपरी चिंचवड़ से गतिमान हुए। स्थानीय जनता अपने आराध्य की ऐसी कृपा को प्राप्त कर मानों अभिभूत थी, धन्य महसूस कर रही थी। सभी श्रद्धालु अपने आराध्य के श्रीचरणों में कृतज्ञता अर्पित कर रहे थे। जन-जन पर अपने दोनों करकमलों से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री पुणे की ओर गतिमान हुए। मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र की धरा को पावन बना रहे हैं। लगभग 7 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री भोसरी में स्थित श्री स्वामी समर्थ सीबीएसई स्कूल में पधारे। जहां उपस्थित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। मध्यान्ह में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री श्री अजीत पंवार आचार्य श्री के दर्शनार्थ आशीर्वाद ग्रहण करने पहुंचे। इस दौरान कई समसामयिक विषयों पर चर्चा हुए। विद्यालय परिसर में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन दर्शन में अनेक सिद्धांत हैं। इसमें आत्मवाद, कर्मवाद, पुनर्जन्मवाद। यह सभी आपस में जुड़े हुए हैं। आत्मा को शाश्वत बताया गया है। आत्मा अमर है, इसे कोई मार नहीं सकता। शरीर का नाश होता है। स्थूल शरीर जीर्ण-शीर्ण और कभी नष्ट भी हो जाता है, किन्तु ज्योतिर्मय आत्मा कभी नहीं मरती। यह आत्मा फिर किसी अन्य भव में चली जाती है। कई व्यक्तियों को अपने पिछले जन्म या अन्य जन्मों की बात भी याद रह सकती है। हालांकि मृत्यु के बाद पूर्व की बातें भूल जाती हैं। कभी-कभी किसी की याद से आवरण हट जाता है। प्रश्न हो सकता है कि यह आत्मा बार-बार जन्म क्यों लेती है? इस संदर्भ में बताया गया कि गुस्सा, मान, माया और लोभ की तीव्रता के कारण आत्मा जन्म-मृत्यु के चक्र में भ्रमण करते हुए बार-बार जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। जब ये चारों पूर्णतया क्षीण हो जाते हैं तो आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर लेती है, फिर उसका कोई जन्म नहीं होता है। कभी तर्क के अनुसार कोई पुनर्जन्मवाद को न भी माने तो भी आदमी को अशुभ कार्यों से बचने का प्रयास करना चाहिए। शुभ कार्यों को करने तथा अशुभ कार्यों से बचने पर आदमी का वर्तमान जीवन भी अच्छा रह सकता है और आगे भविष्य भी अच्छा हो सकता है। अशुभ कार्यों के कारण से तो वर्तमान के साथ-साथ भविष्य भी खराब हो सकता है। इसलिए आदमी को निरंतर शुभ कार्यों में समय का नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को पुनर्जन्मवाद में विश्वास रखते हुए सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। धर्मयुक्त जीवन कल्याणकारी हो सकता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि इस विद्यालय के बच्चों में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास होता रहे। आचार्यश्री की स्वागत में श्री विमल सिंघी, श्रीमती इन्दू दूगड़, श्री मंगलचंद दूगड़, निखिल-नितेश दूगड़, पश्चिम महाराष्ट्र आंचलिक सभा के अध्यक्ष श्री तिलोकचंद बच्छावत ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। दूगड़ परिवार ने आचार्यश्री के स्वागत में स्वागत गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने श्री नेमीचंद दूगड़ परिवार को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। स्कूल की ओर से श्री वैभव बाबर ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावना व्यक्त की। श्री अशोक गादिया व श्री प्रकाश गादिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।