🌸 कर्मवाद का सिद्धांत है जैसी करनी वैसी भरनी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-13 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत का अंबडवेट में हुआ पावन पदार्पण
-श्रीमुख से कर्मवाद के सिद्धांतों के श्रवण का श्रद्धालुओं को मिला लाभ
21.03.2024, गुरुवार, अंबडवेट, पुणे (महाराष्ट्र) : पचपन हजार किलोमीटर से भी अधिक की पदयात्रा तय कर जनोद्धर के महान लक्ष्य के साथ युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण पुणे जिले में विचरण करा रहे है। आज प्रातः शेरे गांव से लगभग 13 किमी विहार कर अंबडवेट ग्राम में गुरुदेव पधारे जहां ग्राम पंचायत सचिवालय में गुरुदेव का प्रवास हुआ। सायं भी लगभग 4 किलोमीटर का विहार हुआ। कल आचार्यश्री का पिंपली चिंचवड़ क्षेत्र में भी पदार्पण हो जायेगा। तपती दुपहरी में भी चेहरे पर स्मित मुस्कान लिए आचार्यश्री पदयात्रा करते हुए सद्भावना, नशा मुक्ति का संदेश जन जन तक पहुंचा रहे है। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि कर्मवाद जैन दर्शन एक सिद्धांत है। जैन दर्शन और भी अनेक सिद्धांत बताए गए हैं। इनमें एक आत्मवाद की बात भी बताई गई है। जहां आत्मा को अमूर्त व अमर बताया गया है। आगम व अन्य ग्रन्थों में कर्मवाद की बात मिलती है। जीवन में सभी का अपना पाप और अपना पुण्य होता है। स्वयं का पाप हो अथवा पुण्य स्वयं को ही भोगना पड़ता है। कर्मवाद में एक छोटी-सी बात बताई गई है कि जो भी जैसा भी कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ेगा। अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे कर्मों का बुरा फल भोगना होता है। जिस प्रकार यदि कोई आम्र वृक्ष लगाए तो उसे भविष्य में आम्र फल प्राप्त होते हैं और कोई बबूल के बीज का वपन करने वाले को भविष्य में उसे बबूल के कांटे ही प्राप्त होंगे। सुपात्र को दिए गये दान से पुण्य की प्राप्ति और कर्म निर्जरा भी होती है। संवर-निर्जरा के रूप में धर्म की प्राप्ति भी होती है। सामाजिक स्तर किया गया दान, गरीबों को दिया गया दान भी आदमी को ख्याति प्रदान करने वाली होती है। किसी मित्र को कुछ उपहार देने से मित्रता प्रगाढ़ होती है। शत्रु को उपहार देने से वैर भाव कम होता है। अपने अधिनस्थों को देने से उनकी भक्ति बढ़ सकती है। इस प्रकार जो आदमी जैसा कार्य करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। कहा गया है- जैसी करनी, वैसी भरनी। इसलिए आदमी को अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए। कर्मवाद को इस छोटे से सूत्र को समझकर बुरे कार्यों से बचते हुए धर्म के कार्यों को करने का प्रयास करना चाहिए।