







पुणे (महाराष्ट्र)
नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संदेश के साथ पदयात्रा करते हुए निरंतर गतिमान परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन चरण पुणे की ओर बढ़ते जा रहे है। कोकन क्षेत्र में धर्म गंगा बहाकर शांतिदूत अब घाट क्षेत्र से होते हुए विहार रत है। आज प्रातः आचार्य श्री ने ब्लूग्रास एडवेंचरस रिसोर्ट से मंगल विहार किया। पहाड़ों के मध्य जहां आम बस्ती भी कठिनाई से देखने को मिलती है, मोबाइल नेटवर्क आदि भी जहां सुलभ नहीं है ऐसे में चरैवेति चरैवेति सूत्र के साथ आचार्यश्री महाश्रमण ऊंची ऊंची घाटियों को पार करते हुए जनकल्याण कर रहे है।
ताम्हिनी घाट क्षेत्र होने से कल जहां विहार में चढ़ाव का क्रम रहा वहीं आज प्रातः उतार युक्त मार्ग था। एक ओर आसमान में सीना ताने खड़े ऊंचे प्रवर शिखर वहीं दूसरी ओर नजर आती वृक्षों से घिरी घाटी सहसा ही नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। इनके कारण प्रायः विहार में छाया पूर्ण मार्ग रहा। मार्ग में एक जगह एक छोटा सा वानर आचार्यश्री के समक्ष सड़क पर ही बैठ गया। लोगों के हटाने पर भी वह नहीं हट रहा था और हल्की आवाज कर रहा था। मानों वह भी शांतिदूत के दर्शन को पहुंचा हो। गुरुदेव ने उसे मंगलपाठ सुनाया तो वह सहज शांत हो गया। उपस्थित श्रद्धालु साश्चर्य इस दृश्य को निहार रहे थे। वहां से पूज्य प्रवर पुनः गतिमान हुए। लगभग 7 किमी विहार कर पूज्य प्रवर प्रवास हेतु गरुड़माची रिसोर्ट में एक दिवसीय प्रवास हेतु पधारे।
मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने अठारह पापों का उल्लेख करते हुए कहा – आर्हत वांग्मय में अठारह प्रकार के कर्मों का उल्लेख मिलता है जिसमें मृषावाद अर्थात झूठ बोलना भी एक पाप है। व्यक्ति को कभी असत्य संभाषण नहीं करना चाहिए। क्रोध वश या हंसी मजाक में कई बार व्यक्ति के मुख से असत्य वाणी निकल जाती है। असत्य वचन तो व्यक्ति के विश्वास को मिटाने वाला होता है। जो व्यक्ति सत्य वचन का प्रयोग करता है उसका विश्वास भी जमा रहता है। सत्य वचन बोलने वाले की यश कीर्ति फैलती है और विपदाएं भी मिट जाती है।
गुरुदेव ने एक कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि ईमानदारी के दो भेद कहे जा सकते है, पहला सत्य बोलना दूसरा चोरी नहीं करना। किसी दूसरे की वस्तु को बिना पूछे या चोरी छिपे लेना भी पाप है। व्यक्ति किसी दूसरे की हक का क्यों लें। पर धन को धुली के समान कहा गया है। पराया धन विपत्ति को निमंत्रण देता है। व्यक्ति जीवन में सद्गुणों को स्थान दे और असत्य संभाषण, चोरी जैसी प्रवृतियों से दूर रहे तो वह पाप कर्मों के बंधन से बच सकता है। और अपने जीवन को सुफल बना सकता है।


