🌸 आचार, विचार व व्यवहार में भी झलके अहिंसा : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-पर्वतीय मार्ग पर अखण्ड परिव्राजक का आरोहण
-10 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी पहुंचे ब्लूग्रास एडवेंचर रिसार्ट
16.03.2024, शनिवार, तामिनी घाट, रायगड (महाराष्ट्र) : अरब सागर के तट पर बसी मायानगरी मुम्बई को आध्यात्मिकता से सिंचन प्रदान करने के उपरान्त सह्याद्रि पर्वत शृंखला के तलहटी में बसे कोंकण क्षेत्र को पावन बनाने के पश्चात पूणे को परमार्थ का मार्ग दिखाने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में अपनी धवल सेना संग पर्वतों का आरोहण कर रहे हैं। ठोस चट्टानों से निर्मित पहाड़ों को काट कर बना यह मार्ग प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ है। बरसात के मौसम में यह मार्ग लोगों को बहुत आकर्षित करता है। इस मार्ग पर अनेक स्थानों पर प्राकृतिक झरने गिरने लगते हैं। जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। वर्तमान समय में प्रायः सभी सूखे हुए हैं। तीव्र धूप के कारण कई-कई वृक्ष समूह सूखे-से दिखाई दे रहे हैं। गोल्ड वैली से प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अगले गंतव्य के लिए गतिमान हुए। प्रस्थान के स्थान से अगला गंतव्य पहाड़ों के ऊपर ही अवस्थित था। जो सर्पाकार चढ़ाई भी प्रारम्भ हो गई। हालांकि मार्ग को सुगम बनाने के लिए पहाड़ों को काफी काटा गया है और उनकी तीखी चढ़ाई को कम करने का प्रयास भी किया गया है, किन्तु नीचे ऊपर तक जाने के लिए क्रमशः चढ़ाई तो होनी ही थी। सूर्य के आसमान में चढ़ने के साथ धूप की तीव्रता में यह आरोहण और कठिन कार्य दिखाई देने लगा था, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान थे। सर्पाकार व आरोहण से युक्त मार्ग पर लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री तामिनी घाट के ब्लूग्रास एडवेंटर रिसार्ट में पधारे। इसी परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संदेश प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा काफी व्यापक और प्रिय शब्द है। धर्मशास्त्रों में अहिंसा का बहुत ही महत्त्व है। अहिंसा को शास्त्र में परम धर्म कहा गया है। शास्त्र में यह भी कहा गया है कि ज्ञानी के ज्ञानी बनने का सार अहिंसा है। अहिंसा के पालन के लिए समता होना आवश्यक होता है। समता कारण और अहिंसा कार्य बन सकती है। समता गृहस्थ जीवन में रहने वाला आदमी भी अपने जीवन में अहिंसा की चेतना का विकास करने का प्रयास करे। साधु के लिए तो अहिंसा महाव्रत होता है। वे जीवन भर के लिए अहिंसा महाव्रत को स्वीकार कर पालन करते तो वे कितने हिंसामुक्त जीवन जीने वाले होते हैं। हिंसा और अहिंसा मूलतः आदमी की चेतना में होता है। निश्चय नय में बताया गया कि आत्मा ही अहिंसा और आत्मा ही हिंसा है। जो अप्रमत्त वह अहिंसक और प्रमादी हिंसक होता है। एक वीतराग साधु के चलने के दौरान कोई जीव मर गया तो हिंसा तो हो गई, किन्तु वह साधु उस हिंसा का भागीदार नहीं बनता, क्योंकि वह हिंसा बाहर हुई और भीतर की चेतना से वह पूर्णतः अहिंसा का पोषक है। भीतर में अहिंसा है तो आदमी बाहर भी हिंसा नहीं कर सकता। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी जितना संभव हो सके, अहिंसापूर्ण व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिए, यह कल्याणकारी बात हो सकती है। किसी भी पशु, पक्षी, जीव व पेड़ आदि को नहीं काटने से बचने का प्रयास करना चाहिए। चाहे कहीं भी जाना हो जाए, भोजन में नॉनवेज प्रयोग में न आए। संभव हो सके तो जमींकंद के भक्षण से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा सभी प्राणियों की रक्षा करने वाली होती है, इसलिए अहिंसा को माता भी कहा गया है। इसलिए भी मानव जीवन में आचार, विचार और व्यवहार तीनों में अहिंसा का दर्शन हो।