🌸 महाड़ को पावन बना ज्योतिचरण ने किया पावन प्रस्थान 🌸
-महातपस्वी महाश्रमण का वहूर में पुनरागमन, फजंदार इंग्लिश स्कूल ही बना प्रवास स्थल
-विद्या, विनय, विवेक की त्रिवेणी से जीवन बने शोभित : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-अणुव्रत अमृत महोत्सव सम्पूर्ति समारोह के दूसरे दिन भी अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने दी अपनी प्रस्तुति
-अणुव्रत अनुशास्ता के आह्वान पर स्कूली छात्रों ने स्वीकारी संकल्पत्रयी
11.03.2024, सोमवार, वहूर, रायगड (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहली बार कोंकण प्रदेश को अपने सुपावन चरणों से ज्योतित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोंकण क्षेत्र के अपने निर्धारित अंतिम पड़ाव महाड़ में दो दिवसीय प्रवास के दौरान आध्यात्मिकता की गंगा से पावन बनाने के उपरान्त सोमवार को जब पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग-66 से गतिमान हुए तो महाड़वासी श्रद्धालु अपने आराध्य के चरणों में नतसिर होकर अपने कृतज्ञभावों को अर्पित कर रहे थे। मानों हर एक के हृदय से आवाज आ रही थी, गुरुवर! ऐसे ही कृपा बरसाए रखना। इस गर्मी के मौसम में भी जन-जन आशीषवृष्टि करते हुए अखण्ड परिव्राजक आज पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग-66 पर लौट रहे थे। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पुनः वहूर गांव के फजंदार इंग्लिश स्कूल में पधारे। जहां इससे जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्कूल परिसर ही आयोजित मंगल प्रवचन में आज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के सम्मुख विद्यालय के छात्र भी उपस्थित थे। साथ ही आज अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष के अंतर्गत अणुव्रत यात्रा सम्पूर्ति समारोह का दूसरा दिवस भी समायोजित था। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान करते हुए अणुव्रत के उद्घोष भी कराए। तदुपरान्त वर्तमान अणुव्रत अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता व विद्यार्थियों को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में सुख भी है तो जीवन में दुःख भी बहुत हैं। यह संसार दुःख बहुल है। शारीरिक दुःख के रूप में अनेकानेक बीमारियां शरीर में हो सकती हैं। इससे आदमी दुःखी बन सकता है। मानसिक दुःख भी होता है। अनेक ऐसे कार्य जो मानव की इच्छा के विपरीत हो जाते हैं, उससे आदमी मानसिक रूप से भी दुःखी बन सकता है। अर्थ की समस्या भी गृहस्थ जीवन में दुःख का कारण बन सकती है। कितने-कितने लोगों को भौतिक अनुकूलताओं के कारण सुख की अनुभूति भी होती है, किन्तु पूर्ण रूप से दुःख से छुटकारा नहीं मिल पाता। पूर्ण रूप से दुःख से छुटकारा पाने के लिए आदमी को अध्यात्म-साधना की शरण में जाने का प्रयास करना चाहिए। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर आदमी अपने जीवन को अध्यात्म से भावित भी बना सकता है और दुःखों से मुक्ति की दिशा में भी आगे बढ़ सकता है। अहिंसा, शांति, मैत्री, सद्भाव, नैतिकता, ईमानदारी, विनम्रता, निर्भयता आदि का विकास हो तो जीवन सुखी बन सकता है। ज्ञान अपने आप में परम पवित्र चीज होती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए कितने-कितने विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि हैं। शिक्षा प्राप्ति के लिए कितने विद्यार्थी विदेश भी जाते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाएं तो विद्यार्थियों को सर्वांगीण विकास हो सकता है। अहिंसक जीवनशैली हो, जीवन में नैतिकता रहे, ईमानदारी, सच्चाई रहे, नशे से मुक्त जीवन हो, सेवा की भावना हो तो जीवन सुखी बन सकता है। इसलिए विद्या के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी दिए जाने का प्रयास होना चाहिए। कहा गया है कि विद्या विनय से शोभित होती है। विद्या के साथ विनय का विकास और विवेक भी अच्छा हो तो विद्या, विनय व विवेेक की त्रिवेणी से जीवन शोभित बन सकता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि अणुव्रत विश्व भारती एक बड़ी संस्था बन गयी है। उसकी अनेक गतिविधियां हैं। अणुव्रत का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है। भारत और भारत से बाहर भी अणुव्रत का विकास हो। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों के द्वारा बालपीढ़ी को संस्कारी बनाने का प्रयास हो। वृक्षों, वनस्पतियों, जल आदि के अपव्यय से बचने का प्रयास हो। धर्मग्रन्थों की अच्छी बातें जीवन में उतरें तो बहुत अच्छा विकास हो सकता है। अणुव्रत की बातें आदमी के दिमाग में बस जाएं तो फिर आदमी जहां भी रहेगा, वहां अणुव्रत की स्थापना हो सकती है। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के सूत्रों का वर्णन कर उनसे प्रश्न आदि करने के उपरान्त आह्वान किया तो उपस्थित विद्यार्थियों आदि उपस्थित जनता ने अपने स्थान पर खड़े होकर संकल्पत्रयी स्वीकार की। अणुव्रत अमृत महोत्सव सम्पूर्ति समारोह के दूसरे दिन आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व अणुव्रत से जुड़े लोगों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। प्रवचन के उपरान्त फजंदार इंग्लिश स्कूल के प्रिंसिपल श्री राहि फजंदार, शिक्षक श्री रमेश खोत, अणुव्रत विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, अखिल भारती तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री रमेश डागा, सम्पूर्ति समारोह के सहसंयोजक श्री राजेश मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन अणुव्रत विश्व भारती के सहमंत्री श्री मनोज सिंघवी ने किया।