🌸 आत्मा की शुद्धि का साधन है ईमानदारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-लोणेर के आनंदनगर कालोनी में आध्यात्मिक आनंद बांटने पधारे मानवता के मसीहा
-सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संदर्भ में आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
07.03.2024, गुरुवार, लोणेर, रायगड (महाराष्ट्र) : कोंकण क्षेत्र की यात्रा के दौरान बुधवार को पहली बार जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी माणगांव में पधारे तो यहां रहने वाली श्रद्धालु जनता निहाल हो उठी। अपने आराध्य की ऐसी कृपा को प्राप्त कर दिन-रात श्रद्धालु इस दुर्लभ अवसर का लाभ उठाते रहे। गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग माणगांव से मंगल प्रस्थान किया। माणगांववासियों ने आचार्यश्री के प्रति अपने कृतज्ञ भाव व्यक्त किए। जनता पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री ने अपने चरण गतिमान किए। इस क्षेत्र के मौसम के अनुसार सुबह-सुबह शीतलता का प्रभाव दिखाई दे रहा था, किन्तु जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ने लगा, शीतलता जाती रही। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-66 अभी भी मानों किसी श्रद्धालु की भांति पूज्यचरणों का साथ पकड़े हुए है। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री लोणेर गांव के बाहरी भाग में स्थित आनंदनगर सोसायटी में पधारे। इस परिसर में रहने वाले श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। इसी परिसर में एक बिल्डिंग में आचार्यश्री प्रवास हेतु पधारे। प्रवास स्थल के समक्ष ही आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान में हमारी अणुव्रत यात्रा चल रही है। अणुव्रत आन्दोलन को प्रारम्भ हुए 75वां वर्ष चल रहा है, इसी संदर्भ में यह यात्रा भी चल रही है। जैन वाङ्मय में महाव्रत और अणुव्रत की बात बताई गई है। महाव्रत का अनुपालन साधु करते हैं तो गृहस्थों के लिए अणुव्रत के नियम पालनीय होते हैं। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय अणुव्रत को व्यापक रूप मिला। इसमें किसी भी जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय के लोग जुड़ सकते हैं। अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करने के लिए जैन होना कोई आवश्यक नहीं। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति- इन तीन सूत्रों में मानों अणुव्रत के सारे नियम समाहित हो जाते हैं। इसमें नैतिकता की बात बताई गई है। आदमी को अपने जीवन में ईमानदारी के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में नैतिकता हो, ईमानदारी के भाव होते हैं तो आत्मा भी शुद्ध बनी रह सकती है। अपना कार्य क्षेत्र में भी ईमानदारी हो। न्याय पाने के लिए भी आदमी को ईमानदारी के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। किसी को झूठे आरोप में फंसाने से, झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। न्याय व्यवस्था में भी यदि ईमानदारी व्याप्त हो जाए तो संभव है कि तत्काल न्याय भी प्राप्त हो जाए। दुकानदारी में भी ईमानदारी हो, आदमी बेइमानी से बचने का प्रयास करे। जीवन में ईमानदारी बनी रहे तो आत्मा की शुद्धि हो सकती है। कार्यक्रम के अंत में आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान किया। आचार्यश्री के स्वागत में इस परिसर से जुड़े श्री प्रदीप गांधी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।