🌸 ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है मोक्ष प्राप्ति का मार्ग : महातपस्वी महाश्रमण 🌸
-11 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे वहूर के फजंदार इंग्लिश स्कूल
-आचार्यश्री ने जनता को मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर गति करने को किया अभिप्रेरित
08.03.2024, शुक्रवार, वहूर, रायगड (महाराष्ट्र) : कोंकण क्षेत्र में आध्यात्मिकता की गंगा को प्रवाहित करने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को लोणेर से मंगल प्रस्थान किया। अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी का कारवां राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-66 पर गतिमान हुआ। एक भक्त की भांति यह राजमार्ग पूज्यचरणों से पावन होने का बड़ी ही कुशलता के साथ सौभाग्य प्राप्त कर रहा है। मार्ग के बांयीं ओर स्थिति पहाड़ियों की ओट निकलते सूर्य की किरणें प्रातःकाल अद्भुत छटा बिखेर रही हैं, किन्तु जैसे-जैसे सूर्य आसमान में चढ़ता है, वे किरणें धरती पर पूरे इस पहाड़ी क्षेत्र को तवे की भांति तप्त बना देती हैं। ऐसे में आमजन प्रभावित भले नजर आ रहे हों, किन्तु समता के साधक, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री अपने समत्व भाव से अपने गंतव्य की ओर गतिमान हैं। राजमार्ग पर गतिमान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर वहूर गांव में स्थित फजंदार इंग्लिश स्कूल में पधारे। स्कूल परिसर में ही आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा की परम गति मोक्ष होती है। यों तो आत्मा इस संसार में कर्म बंधनों से बंधकर जन्म-मरण के चक्र में निरंतर भ्रमण करती रहती है, किन्तु मोक्ष की प्राप्ति के उपरान्त आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर एकांत सुख में स्थापित हो जाती है। प्रश्न हो सकता है कि इस मोक्ष को प्राप्त करने का मार्ग क्या है। इस प्रश्न का उत्तर ग्रन्थों में बताया गया है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की सम्यक् आराधना के द्वारा मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। ज्ञान से आदमी पदार्थों को जानता है। दर्शन से श्रद्धा और विश्वास दृढ़ बनता है। चारित्र की आराधना के द्वारा आदमी कर्म बन्धनों को आत्मा को चिपकने से रोकता है और तप के द्वारा पूर्वार्जित कर्मों का नाश कर मानव अपनी आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर गतिमान कर सकता है। चारित्र से कर्म बन्धन का निग्रह तक्था तप से विशुद्धि होते ही आत्मा निर्मल बनकर मोक्षश्री को प्राप्त कर लेती है। मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे प्रथम मार्ग ज्ञान को बताया गया है। ज्ञान के बिना आदमी अंधे के समान होता है। ज्ञान की प्राप्ति होने का अर्थ है कि प्रकाश की प्राप्ति हो गई। आंख भी हो, प्रकाश भी हो, वह दृश्य भी हो और देखने की भावना भी हो किसी चीज को आदमी देख सकता है। इसी प्रकार शिक्षा प्राप्ति में विद्यार्थी, शिक्षक, पढ़ाई के उपकरण, पढ़ाई के स्कूल, विद्यालय, कॉलेज आदि स्थान होते हैं तो ज्ञान प्राप्ति में सुविधा हो सकती है। इसी प्रकार सम्यक् ज्ञान से श्रद्धा पुष्ट होती है, चरित्र के द्वारा कर्म बंधनों का निग्रह और तपस्या के द्वारा कर्मों का निर्जरण कर आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। प्रत्येक आदमी को इन चारों की सम्यक् आराधना के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का संगान किया। श्री लादूलाल गांधी ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे स्थानीय जिला परिषद सदस्य श्री जीतू भाई
सावंत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।