🌸 मान, अहंकार को छोड़ निरहंकारी बने मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण 🌸
-14 कि.मी. का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री ने पोटनेर को किया पावन
-श्री कोंकण पार्श्व जैन तीर्थधाम में धवल सेना संग पधारे आचार्यश्री महाश्रमण
-अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही साधना कर प्राप्त कर सकता है मोक्ष
05.03.2024, मंगलवार, खांब, रायगड (महाराष्ट्र) : मानव-मानव के कल्याण के लिए, जन-जन में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का प्रसार करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर यात्रायित हैं। सोमवार को प्रातः आचार्यश्री ने खांब गांव से मंगल प्रस्थान किया। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-66 इस समय ज्योतिचरण की चरणरज को प्राप्त कर धन्य बन रही है। इस मार्ग के नवीनीकरण व चौड़ीकरण का कार्य भी गतिमान है। ऐसे में कुछ-कुछ स्थानों पर मार्ग जर्जर अवस्था में तो कुछ स्थानों पर अपनी पुरानी अवस्था में है। कहीं-कहीं कई किलोमीटर तक आरसीसी ढलाई के द्वारा बन रहा यह राजमार्ग किसी आंगन की भांति साफ-सुथरा नजर आ रहा है। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक पहाड़ व पेड़-पौधे दृष्टिगोचर हो रहे हैं। सुबह के समय की ठंड भी अपना स्थान बनाए हुए है, जो सूर्योदय कुछ ही समय बाद गायब हो जाती है। फिर पूरे दिन गर्मी का प्रभाव बना रहता है। सूर्यास्त होने के बाद धीरे-धीरे वातावरण में शीतलता व्याप्त हो जा रही है। ऐसे वातावरण में भी समताभाव के साथ गतिमान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर पोटनेर गांव में राजमार्ग के निकट ही स्थित श्री कोंकण पार्श्व जैन तीर्थधाम में पधारे। आचार्यश्री ने मंदिर की कुछ सीढ़ियों पर आरोहण कर भगवान पार्श्व की वंदना करने के उपरान्त प्रवास स्थल में पधारे। मंदिर परिसर में ही आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि कई साधक इस जीवन के बाद देवलोक को प्राप्त करते हैं तो कुछ इस जन्म के बाद सीधा मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकते हैं। देवगति में उच्च स्थान प्राप्त करना भी अच्छी बात होती है, किन्तु मोक्षश्री का वरण कर लेना अति विशेष बात हो सकती है। इसके लिए उच्च साधना करनी होती है। अपनी साधना और संयम में लीन रहने वाले को सर्वप्रथम केवल ज्ञान और उसके बाद मोक्ष का प्राप्त होना निश्चित हो जाता है। आदमी में अहंकार की भावना होती है। किसी को अपने ज्ञान का अहंकार हो सकता है, किसी को बल का, किसी को सुन्दरता का किसी को अपने सत्ता, प्रतिष्ठा का भी घमण्ड हो सकता है। जहां अहंकार का आगमन होता है, मान का समागमन होता है, वहां विनय का नाश हो जाता है। जहां अहंकार होता है, वहां प्रभु भी नहीं होते हैं। अहंकार और विनय दोनों एक साथ नहीं चल सकते। इसलिए आदमी को अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार का परित्याग होता है तो आदमी अच्छे ज्ञान को भी प्राप्त कर सकता है, क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति के लिए ज्ञान के प्रति विनय की भावना और ज्ञानदाता के प्रति भी विनय और श्रद्धा का भाव होता है तो ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जो आदमी अभिवादनशील और वृद्धों की सेवा करने वाला होता है, उसका आयुष्य, विद्या, बल और यश का भी विकास हो सकता है। इसलिए मानव अपने जीवन में मान, अहंकार को छोड़कर निरहंकार में रहने का प्रयास करे तो उसकी आत्मा का भी कल्याण हो सकता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने भगवान पार्श्व के स्थान में भगवान पार्श्व की स्तुति में गीत का भी आंशिक संगान किया।