🌸 इच्छाएं आकाश के समान अनंत : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-नागोठाणे में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल पदार्पण
-पूज्यचरणों से पावन बना श्रीमती शांतिबाई ओटरमल जैन आयुर्वेदिक कॉलेज
-आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे अचलगच्छ के संत गुणवल्लभसागरजी
-दो संप्रदायों के मिलन की स्थिली बना कॉलेज परिसर
-गुणवल्लभसागरजी ने दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति
03.03.2024, रविवार, नागोठाणे, रायगड (महाराष्ट्र) :
कोंकण क्षेत्र की यात्रा के दौरान रविवार को प्रातःकाल जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आमटेम से मंगल प्रस्थान किया। जिस राष्ट्रीय राजमार्ग पर आचार्यश्री गतिमान है, उसका नवनिर्माणकार्य भी रहा है। इस यह राजमार्ग कहीं-कहीं अपने पूर्व के रूप में है तो कहीं कार्य चलने के कारण खोदा हुआ है तो कहीं-कहीं नई आरसीसी की ढलाई का कार्य पूरा हो चुका है तो कुछ किलोमीटर तक एकदम चमचमा भी रही है। मार्ग के दोनों ओर कहीं दूर तो कहीं पास में पहाड़, वृक्षों का समूह खेतों में किसानों द्वारा लगाई गई सब्जियां भी दिखाई दे रही हैं। इस प्राकृतिक वातावरण में सुबह के समय वातावरण में थोड़ी शीतलता भी महसूस होती है।
मायानगरी की गगनचुम्बी अट्टालिकाएं अब बीते दिनों की बातें हो गई हैं। अब प्राकृतिक सुषमा शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के यात्रा की अनुगामी बन गई है। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर नागोठाणे में स्थित श्रीमती शांतिबाई ओटरमल जैन आयुर्वेदिक कॉलेज में पधारे। इस परिसर के ऑनर श्री किशोर जैन आदि ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
कॉलेज परिसर में आचार्यश्री के पदार्पण के कुछ समय पश्चात ही जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा के अचलगच्छ के मुनि गुणवल्लभसागरजी भी पूज्य सन्निधि में उपस्थित हुए। दो आम्नायों का मिलना श्रद्धालुओं को प्रसन्नता प्रदान कर रहा था। कार्यक्रम में सर्वप्रथम आचार्यश्री ने यात्रा आदि के संदर्भ में वर्णन करते हुए धर्म का अच्छा प्रचार करते रहने की प्रेरणा प्रदान की। अचलगच्छ के मुनि गुणवल्लभसागरजी ने अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए कहा कि जैसे बसंत के आने से प्रकृति मुस्कुराती है, उसी प्रकार आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संतों के शुभागमन से देश की संस्कृति मुस्कुराती है। आचार्यश्री का संदेश से हम सभी को प्रेरणा मिलती है। आचार्यश्री व मुनि गुणवल्लभसागरजी के मध्य कुछ वार्तालाप का भी क्रम रहा।
मुनिजी को विदा करने के उपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में इच्छाएं होती हैं। इच्छाएं इतनी हैं कि मानों उनका कोई अंत नहीं है। इसलिए कहा गया है कि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं। इच्छाएं अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी हो सकती हैं। जब साधना करने, किसी भी पवित्र सेवा करने, किसी का कल्याण करने, सेवा करने आदि की इच्छा हो तो ऐसी आध्यात्मिक इच्छाएं कल्याणकारी हो सकती हैं। भौतिक लालसा जब प्रबल होती है तो उसके कारण आदमी की दुर्गति होती है। जब इच्छाएं पूरी नहीं होती तो आदमी दुःखी बनता है। भौतिक संसाधनों से आदमी को सुविधा मिल सकती है, किन्तु शांति और सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। आंतरिक सुख और शांति की प्राप्ति के लिए आदमी को भौतिक इच्छाओं को सीमित करने और आध्यात्मिक इच्छाओं को बढ़ाने तथा आध्यात्मिक दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए। जिसके माध्यम से आदमी आंतरिक सुख और शांति को प्राप्त कर सकता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान किया।
श्रीमती शांतिबाई ओटरमल जैन आयुर्वेदिक कॉलेज के ऑनर श्री किशोर जैन ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षित भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने अपनी भावनाओं इस परिसर में बनने वाले हॉस्टल का नाम आचार्यश्री के नाम से रखने की अपनी भावना भी व्यक्त की।