🌸 सद्भाव व सहिष्णुता के विकास का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे आमटेम गांव
-रायगड जिला परिषदशाला सेण्ट्रल स्कूल में शांतिदूत का हुआ प्रवास
02.03.2024, शनिवार, आमटेम, रायगड (महाराष्ट्र) : अरब सागर के तट पर कोंकण के पठारीय छोर बसे भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में विख्यात, पश्चिमी देशों का प्रवेश के लिए भारत का प्रवेश द्वार, महाराष्ट्र की राजधानी मायानगरी मुम्बई में पंचमासिक चतुर्मास, शेषकाल में उपनगरीय यात्रा, वर्ष 2024 का मर्यादा महोत्सव सहित लगभग नौ महीनों का विहार प्रवास बृहत्तर मुम्बई में करते हुए सागर के तट पर ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के संग कोंकण क्षेत्र को पावन बनाने को गतिमान हैं। भारत के इस दक्षिण-पश्चिम हिस्से में मानों प्रतिदिन तापमान बढ़ता जा रहा है। वैसे देश के अन्य हिस्सों में जहां बसंत की बयार है, वहीं इस हिस्से में सूर्य की तीखी धूप लोगों को पसीने से नहला रही है। इस प्राकृतिक प्रतिकूलता के उपरान्त भी दृढ़संकल्पी आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान हैं। शनिवार को प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गड़ब से मंगल प्रस्थान किया। आज का विहार मार्ग कुछ किलोमीटर के उपरान्त टूटा-फुटा-सा था। ऐसी मार्ग पर भी आचार्यश्री गति करते हुए लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर रायगड जिले के आमटेम गांव में स्थित रायगड जिला परिषद शाला सेण्ट्रल स्कूल आमटेम में पधारे। स्कूल परिसर में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे भीतर वृत्तियां हैं। गुस्से, अहंकार, माया, लोभ, राग, द्वेष व घृणा की भी है तो दूसरी ओर क्षमा, निरहंकारता, सरलता, संतोष, वीतरागता, अघृणा व प्रमोद आदि सद्वृत्तियां भी हैं। आदमी के भीतर सद्वृत्तियां हैं तो दुरवृत्तियां भी हैं। आदमी के भीतर स्थित वृत्ति उभरती है तो फिर आदमी उस प्रकार प्रवृत्ति बाहर में करता है। इन्हें असद्भाव भी कह सकते हैं। इस प्रकार आदमी के भीतर सद्भाव और असद्भाव दोनों होते हैं। आदमी को असद्भावों को अस्तित्वहीन बनाने और सद्भावों को पुष्ट बनाने का यथासंभवतया प्रयास करना चाहिए। सामने कोई परिस्थिति आती है तो आदमी कभी असहिष्णु बन जाते हैं। वह असहिष्णुता मन के स्तर से होते हुए कई बार वाणी के स्तर पर, शारीरिक प्रवृत्ति के स्तर पर भी आ जाती है। किसी ने कुछ कह दिया, अपने जुड़े लोगों को कुछ कह दिया तो आदमी असहिष्णु हो जाता है, फिर गुस्से और अहंकार में बहुत कुछ करने को तैयार हो जाता है अथवा कर भी देता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में सहिष्णुता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। भगवान महावीर के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करें कि उन्होंने किस प्रकार समता भाव से परिषहों को सहा। इसलिए आदमी को कठिनाइयों और विपरित परिस्थितियों में भी समता और सहिष्णुता के विकास का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री के आगमन से हर्षित आमटेम के सरपंच श्री लक्ष्मण ताम्बोली ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।