🌸 श्री नाकोड़ा कर्ण-बधिर विद्यालय में पधारे जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-सरवलीवासियों ने अपने आराध्य का किया भावभरा अभिनन्दन
-मैत्रीभाव व सच्चाई के पथ पर चलने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
-मूक-बधिर विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के अभिनंदन ने दी अपनी भव्य प्रस्तुतियां
-आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को प्रदान किया मंगल आशीर्वाद
22.01.2024, सोमवार, सरवली, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जन-जन को मानवीय मूल्यों की प्रेरणा देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ मुम्बई महानगर की उपनगरीय यात्रा के दौरान सरवली में स्थित श्री नाकोड़ा कर्ण-बधिर विद्यालय में पधारे। आचार्यश्री का स्वागत विद्यालय के विद्यार्थियों ने बड़े ही मोहक रूप में किया। बोलने व सुनने की क्षमता नहीं होने के बावजूद विद्यार्थी श्रीराम जानकी लक्ष्मण व हनुमान के रूप में तथा दर्जनों विद्यार्थी करबद्ध होकर आचार्यश्री का अभिनंदन कर रहे थे। आचार्यश्री ने भी इन सभी छात्रों को अपने मंगल आशीष से अच्छादित किया। इसके पूर्व सोमवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भिवण्डी से मंगल प्रस्थान किया। आज भारत में लगभग 500 वर्षों के संघर्ष और प्रतीक्षा के उपरान्त अयोध्या में रामलाल के भव्य मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी जन-जन का उत्साह देखने को मिल रहा था। उस उत्साह की झलक मुम्बई के सभी मार्गों पर देखने को मिल रही थी। जगह-जगह लगे बैनर, पोस्टर, कटआउट और वाहनों, भवनों व अनेक स्थानों पर लगे ध्वज लोगों के उत्साह को दर्शा रहे थे। उत्साहित लोग आचार्यश्री के दर्शन का लाभ भी प्राप्त कर रहे थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सरवली में स्थित श्री नाकोड़ा कर्ण बधिर विद्यालय के प्रांगण में पधारे तो छात्रों ने भव्य स्वागत-अभिनंदन किया। विद्यालय में आचार्यश्री के शुभागमन व रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को दर्शाती हुई रंगोली भी बनी हुई थी। आचार्यश्री ने इसका भी अवलोकन किया। विद्यालय परिसर में बने मर्यादा पुरुषोत्तम समवसरण से तेरापंथ धर्मसंघ के युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी को जीवन में यथार्थवादी होना चाहिए। सच्चाई का अन्वेषण करने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए तथा झूठ से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधुओं को तो सर्वमृषावाद का त्याग होता है। हमारी परंपरा में सभी सत्य बोलना आवश्यक नहीं, किन्तु झूठ नहीं बोलना चाहिए। आदमी सच्चाई के पथ पर चले और स्वयं अनाग्रही भाव से सच्चाई को खोजने का प्रयास करे तो वह उसके लिए कल्याणकारी हो सकता है। सच्चाई की राह पर चलने वाला आदमी कितने-कितने पापों से बच सकता है। जीवन में सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना हो तो हिंसा का अवरोध हो जाता है। इस प्रकार सच्चाई, अहिंसा व मैत्री की भावना का विकास हो तो जीवन का कल्याण हो सकता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज नाकोड़ा से जुड़े हुए कर्ण-बधिर विद्यालय में आना हुआ है। जहां कर्णेन्द्रिय क्षमता नहीं है। इन्हें किसी इशारे की विधा से सीखाने का प्रयास किया जा रहा है। आज श्रीरामचन्द्रजी और अयोध्या का भी प्रसंग है। श्रीरामचन्द्रजी के जीवन से अध्यात्म की प्रेरणा प्राप्त होती रहे। मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने विद्यार्थियों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के प्रवचन व साध्वीप्रमुखाजी के उद्बोधन तथा अन्य सभी कार्यक्रम की जानकारी बच्चों को उनके अध्यापिकाओं के द्वारा इशारे की भाषा में साथ-साथ समझाते हुए किया गया, ताकि वे दी गई प्रेरणा को समझ सकें। विद्यालय के विद्यार्थियों ने आचार्यश्री की अभिवंदना व श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के संदर्भ में अपनी मोहक प्रस्तुति दी। तदुपरान्त विद्यार्थियों ने मलखम्भ से संदर्भित बड़ी रोचक प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने बच्चों को पावन आशीर्वाद भी प्रदान किया। विद्यालय के ट्रस्टी व संस्थापक श्री अनिल जैन व प्रिंसिपल श्रीमती अश्विनीजी ने भी अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।