🌸 सम्यक्त्व को निर्मल बनाने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री ने छह द्रव्यों व नव तत्त्वों का किया विवेचन, सर्वदुःख मुक्ति का दिखाया मार्ग
-ठाणे के पूर्व सांसद संजीव नाइक ने भी शांतिदूत के किए दर्शन
-गुरु सन्निधि में पहुंचे संतों ने व्यक्त किए हृदयोद्गार, प्राप्त किया सुगुरु का आशीर्वाद
19.01.2024, शुक्रवार, ठाणे (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
मुम्बई महानगर की धरा पर पंचमासिक चतुर्मास सम्पन्न करने के उपरान्त मुम्बई महानगर के उपनगरों को पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में ठाणे में स्थित रेमण्ड मिल कम्पाउण्ड के कम्युनिटी हॉल में पंचदिवसीय प्रवास कर रहे हैं।
शुक्रवार को निलगिरी उद्यान में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह दुनिया, जगत, सृष्टि क्या है? इसका उत्तर जैन दर्शन देता है कि यह दुनिया या सृष्टि छह द्रव्यों वाली है। छह द्रव्यों का समवाय यह लोक है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय। पच्चीस बोल में भी इसे बताया गया है। इस दुनिया का एक तत्त्व है आकाश और एक तत्त्व है काल। पुद्गल भी एक घटक और जीव भी एक घटक है। जीव की गति क्रिया में धर्मास्तिकाय तथा जीव और पुद्गलों के स्थिर होने में सहायक तत्त्व अधर्मास्तिकाय। दुनिया में जो कुछ है, इन छह द्रव्यों में समाविष्ट है। आदमी इस संसार के दुःखों से मुक्त होने व शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए आदमी को नौ तत्त्वों को समझकर कल्याण के रास्ते पर चलने का प्रयास हो तो मोक्ष की प्राप्ति संभव हो सकती है।
जीव कोई कर्म करता है तो उसके कर्मों का बन्ध होता है। कर्म का फल या तो पुण्य के रूप प्राप्त होता है अथवा पाप के रूप मे होता है। आश्रवों के कारण कर्मों का आकर्षण होता है। संवर के द्वारा आश्रवों को छोड़ा जाए तो कर्मों का मार्ग अवरूद्ध हो जाएगा तो नए सीरे से आने वाले कर्मों का रोका जा सकता है। पूर्वकृत कर्मों का क्षय तपस्या के द्वारा क्षीण किया जा सकता है। निर्जरा के लिए तपस्या आराध्य है। इस प्रकार संवर और निर्जरा की अंतिम निष्पत्ति होगी कि आत्मा निर्मल हो जाएगी और मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी और सर्वदुःखों से मुक्त हो जाएगी। आत्मवाद को समझने के लिए नौ तत्त्वों की आवश्यकता होती है। आत्म कल्याण के संदर्भ में आदमी को नव तत्त्व को अच्छे रूप में आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए। जानकारी कर लेने के लिए आदमी को उस प्रकार से साधना कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
साधना के ज्ञान की परम आवश्यकता होती है। सम्यक् ज्ञान व सम्यक् दर्शन के बिना सम्यक् चारित्र की प्राप्ति संभव नहीं होती। सम्यक्त्व रत्न से बड़ा कोई रत्न नहीं, इससे बड़ा कोई मित्र नहीं और इससे बड़ा कोई बंधु नहीं और सम्यक्त्व से बड़ा कोई रत्न नहीं है। आदमी को ही नहीं, चारित्रात्माओं को भी अपने सम्यक्त्व को निर्मल बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। यथार्थ के प्रति श्रद्धावान बने रहें और सर्वदुःखमुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें, यह काम्य है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त कोपरखैरना से जुड़े लोगों ने वहां के प्रवास से संदर्भित बैनर का लोकार्पण किया गया। इसके उपरान्त ठाणे के पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक ने आचार्यश्री के अभिनंदन में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। चार चतुर्मास के बाद गुरुदर्शन करने वाले मुनि आलोककुमारजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए अपने सहवर्ती संतों के साथ गीत का संगान किया। तदुपरान्त मुनि लक्ष्यकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने गुरु सन्निधि में पहुंचे संतों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया।