🌸 मुलुण्ड की धरा पर पधारे मानवता के मसीहा महाश्रमण 🌸
-भव्य स्वागत जुलूस के साथ मुलुण्डवासियों ने किया अपने आराध्य का अभिनंदन
-दो दिनों तक श्रद्धालु जनता लगाएगी ज्ञानगंगा में गोते
-स्वयं से स्वयं का करें निग्रह : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
14.01.2024, रविवार, मुलुण्ड (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
मायानगरी मुम्बई की उपनगरीय यात्रा करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए रविवार को मुलुण्ड की धरा को पावन बनाने के लिए पधारे तो अपने आराध्य को अपने आंगन में प्राप्त कर मुलुण्ड की जनता हर्ष और उल्लास से सराबोर हो उठी। उल्लसित जनता अपने आराध्य के अभिनन्दन में बुलन्द जयघोष कर रही थी। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन से मुलुण्ड में मानों उत्सव का माहौल था। मार्गों में बने तोरण द्वार, होर्डिंग्स, तेरापंथ की विभिन्न संस्थाओं द्वारा बनाई गई झांकियां उनके उल्लास को प्रदर्शित कर रहे थे। जन-जन पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री द्विदिवसीय प्रवास के लिए मुलुण्ड (पश्चिम) में स्थित मुम्बई पब्लिक स्कूल में पधारे।
इसके पूर्व शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भाण्डुप से मंगल प्रस्थान किया। दोनों दिनों तक आध्यात्म की गंगा प्रवाहित करने के उपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री ने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान किया तो भाण्डुपवासियों ने अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित की। मार्ग में अनेक स्थानों पर उपस्थित जनता को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्यश्री मुलुण्ड की ओर गतिमान थे। उत्साहित मुलुण्डवासी अपने आराध्य के श्रीचरणों का अनुगमन कर रहे थे। मुलुण्ड की सीमा में आचार्यश्री के पधारते ही पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। अपने आराध्य के आगमन से पूरा मुलुण्ड आराध्यमय बन गया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री निर्धारित प्रवास स्थल में पधारे।
प्रवास स्थल से कुछ सौ मीटर दूर स्थित महाकवि कालीदास नाट्यमंदिर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणी किससे डरते हैं? इस प्रश्न का एक उत्तर है कि सभी प्राणी दुःख से डरते हैं। कोई भी प्राणी किसी भी प्रकार के कष्ट से डरता है। दुःख, कष्ट प्राणी के जीवन में उसके द्वारा अज्ञानतावश किए गए प्रमाद के कारण ही प्राप्त होता है। इस संसार में जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु भी दुःख है। इसके अलावा भी अनेक प्रकार के दुःख को प्राणी प्राप्त करता है।
शास्त्र में सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त होने का मार्ग बताया गया कि प्राणी स्वयं के द्वारा स्वयं का निग्रह करे अर्थात् आदमी स्वयं पर अनुशासन करे तो उसे सर्व दुःख से मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। इसके लिए आदमी को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। जुबान पर लगाम होनी चाहिए। कटु बोलना, झूठ बोलना, किसी पर मिथ्या आरोप लगाना वाणी का असंयम है। मनुष्य अपनी वाणी पर अभिनिग्रह करने का प्रयास करे। इसी प्रकार आदमी को अपने मन का निग्रह करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी चिन्तन-चिन्तन से भी दुःखी बन सकता है। आदमी का चिन्तन अच्छा हो तो वह दुःखों से बच सकता है। कोई कठिनाई आ भी जाए तो आदमी को समता-शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी स्वयं के द्वारा स्वयं का निग्रह करे तो दुःखों से मुक्त हो सकता है।
आचार्यश्री ने मुलुण्डवासियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि यहां आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी पधारे थे, आज मेरा भी आना हो गया। यहां की जनता में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुलुण्डवासियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री चुन्नीलाल सिंघवी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया।